अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास-भाग 1
-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू. एस. ए.
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भारत देश विभिन्न संस्कृति के साथ-साथ कई प्रकार के अमूल्य इतिहास का समावेश है। वक्त की साथ देश की संस्कृति और इतिहास मानो धुंधले से होने लगे हैं। यदि इसे ठीक से संभाल कर नहीं रखा गया तो आने वाली पीढ़ी हमारे पूर्वजों की उत्कृष्ट रचना और हमारी सबसे सुंदर संस्कृति और इतिहास कभी जान ही नहीं पाएगी। इसकी संरक्षण की ज़िम्मेदारी हर भारतीय की है। 5000 वर्षों से भी अधिक पुराने इतिहास की यह उत्कृष्ट रचना शायद मुगलों और अंग्रेजों की पहुंच और समझ से परे रही होगी। शायद इसीलिए भारतीय संस्कृति और इतिहास के असली मायने कई देशवासियों को नहीं पता होंगे। उत्कृष्ट रचनाओं में एक रचना श्री निष्कलंक महादेव की है।
गुजरात के भावनगर में कोलियाक तट (Koliyak Beach) से तीन किलोमीटर अंदर अरब सागर में स्थित है श्री निष्कलंक महादेव मंदिर। यहाँ पर अरब सागर की लहरें रोज़ शिवलिंगों का जलाभिषेक करती हैं। प्रति दोपहर 1 बजे तक यह मंदिर जलमग्न रहता है। दोपहर 1 बजे से लेकर शाम तक यह मंदिर दर्शनार्थियों के लिए खुलता है। लोग पानी में पैदल चलकर ही इस मंदिर में दर्शन करने जाते है। इसके लिए उन्हें ज्वार (Tide) के उतरने का इंतज़ार करना पड़ता है। भारी ज्वार (Heavy Tide) के वक़्त केवल मंदिर की पताका और कलश ही नज़र आता है। जिसे देखकर कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता की पानी के नीचे समुद्र में महादेव का प्राचिन मंदीर स्थित हैं। यहाँ पर शिवजी के पांच स्वयंभू शिवलिंग हैं। इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है जो लगभग 5100 वर्ष पुराना है। महाभारत के युद्ध में पांडवों ने कौरवों को पर धर्म युद्ध जीता था। लेकिन युद्ध समाप्ति के पश्चात पांडवों को इस बात का पछतावा था की उन्हें अपने सगे-सम्बन्धियों से युद्ध का पाप लगा है। इस पाप से छुटकारा पाने के लिए पांडव, भगवन श्री कृष्ण के पास गए। पाप से मुक्ति के लिए श्री कृष्ण ने पांडवों को एक काला ध्वज ओर एक काली गाय सौंप गाय का अनुसरण करने को कहा तथा यह बताया कि जिस स्थान पर ध्वज और गाय दोनों का रंग काले से सफ़ेद हो जाए तो समझ लेना की तुम्हें पाप से मुक्ति मिल गई है। साथ ही श्रीकृष्ण ने उनसे यह भी कहा कि जिस स्थान ऐसा हो वहां पर तुम सब भगवान शिव की तपस्या भी करना। पांचो भाई भगवान श्री कृष्ण के कथनानुसार काली ध्वजा हाथ में लिए काली गाय का अनुसरण करने लगे। इस क्रम में वो सब कई दिनों तक अलग अलग जगह गए लेकिन गाय और ध्वज का रंग नहीं बदला। लेकिन जब वो वर्तमान गुजरात में स्थित कोलियाक तट पर पहुंचे तो गाय और ध्वजा का रंग सफ़ेद हो गया और वही पर भगवान शिव का ध्यान करते हुए तपस्या करने लगे। भगवान भोले नाथ उनकी तपस्या से खुश हुए ओर पांचो भाइयों को स्वयंभू शिवलिंग रूप में अलग-अलग दर्शन दिए। वही पांचों शिवलिंग अभी भी इस मंदिर में स्थित हैं। पांचों शिवलिंग के सामने नंदी की प्रतिमा भी है। पाँचों शिवलिंग एक वर्गाकार चबूतरे पर बने हुए है। इस चबूतरे पर एक छोटा सा पानी का तालाब भी हैं जिसे पांडव तालाब कहते हैं। भादव महीने की अमावस को यहां भाद्रवी मेला भरता है। शिवलिंग पर श्रद्धालुओं द्वारा राख़, दूध, दही और नारियल चढ़ाये जाते
है। भावनगर के महाराजा के वंशजो के द्वारा मंदिर कि पताका फहराने से शुरू होता है और फिर
यही पताका मंदिर पर अगले एक साल तक फहराती है और आश्चर्य की बात है की साल भर एक ही पताका लगे रहने के बावज़ूद कभी भी इस पताका को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। यहाँ तक की 2001 के विनाशकारी भूकम्प में भी इस मंदिर को कोई हानि नहीं हुई थी। इस मंदिर को बनाने के लिए कितनी श्रेष्ठ पद्धति का प्रयोग हुआ होगा। हजारों वर्षों से रोज़ यह मंदिर समुद्र में जलमग्न होता आया है, फिर भी अडिक है। है ना अद्भुत? यहाँ पर आकर पांडवो को अपने भाइयों के वध के कलंक से मुक्ति मिली थी इसलिए इसे श्री निष्कलंक महादेव कहा जाता हैं।

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