Thursday, 6 August 2020

अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास: 'रानी की वाव' (बावड़ी)

अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास-भाग 3



-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर

-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू. एस.



'अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास' के तीसरे भाग में एक ऐसे और अद्वितीय विश्व विरासत स्थल व अद्भुत वास्तुकला के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे जिसे 'रानी की वाव' (बावड़ी) के नाम से जाना जाता है। 'रानी की वाव' भारत के गुजरात राज्य के पाटण में स्थित प्रसिद्ध बावड़ी (सीढ़ीदार कुआँ) है। इस के चित्र को जुलाई 2018 में RBI (भारतीय रिज़र्व बैंक) द्वारा100 के नोट पर चित्रित किया गया है तथा 22 जून 2014 को इसे यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल में सम्मिलित किया गया है।

पाटण को पहले 'अन्हिलपुर' के नाम से जाना जाता था, जो गुजरात की पूर्व राजधानी थी। कहते हैं कि रानी की वाव (बावड़ी) वर्ष 1063 में सोलंकी शासन के राजा भीमदेव प्रथम की प्रेमिल स्‍मृति में उनकी पत्नी रानी उदयामति ने बनवाया था। सोलंकी राजवंश के संस्‍थापक मूलराज थे। सीढ़ी युक्‍त बावड़ी में कभी सरस्वती नदी के जल के कारण गाद भर गया था। यह वाव 64 मीटर लंबा, 20 मीटर चौड़ा तथा 27 मीटर गहरा है। यह भारत में अपनी तरह का अनूठा वाव है। वाव के खंभे सोलंकी वंश और उनके वास्तुकला के चमत्कार के समय में ले जाते हैं। वाव की दीवारों और स्तंभों पर अधिकांश नक्काशियां, राम, वामन, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि, आदि जैसे अवतारों के विभिन्न रूपों में भगवान विष्णु को समर्पित हैं।

'रानी की वाव' को विश्व विरासत की नई सूची में औपचारिक रूप से शामिल किया गया है। 11वीं सदी में निर्मित इस वाव को यूनेस्को की विश्व विरासत समिति ने भारत में स्थित सभी बावड़ियों (स्टेपवेल) की रानी का भी खिताब दिया है। इसे जल प्रबंधन प्रणाली में भूजल संसाधनों के उपयोग की तकनीक का बेहतरीन उदाहरण माना है। 11वीं सदी का भारतीय भूमिगत वास्तु संरचना का अनूठे प्रकार का सबसे विकसित एवं व्यापक उदाहरण है यह, जो भारत में वाव निर्माण के विकास की गाथा दर्शाता है। सात मंजिला यह वाव मारू-गुर्जर शैली का साक्ष्य है। ये करीब सात शताब्दी तक सरस्वती नदी के लापता होने के बाद गाद में दबी हुई थी। इसे भारतीय पुरातत्व सर्वे ने वापस खोजा। क्या कहीं आपने सात मंजिला स्टेपवेल (बावड़ी) देखी है? यह एक अद्भुत वास्तुकला और बेहतरीन अभियंता को दर्शाती है। है ना, 'अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास!'






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