अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास-भाग 7
-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू. एस. ए.
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'अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास' के सातवें भाग में हम 'विजय स्तंभ' के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। विजय स्तंभ भारत के राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित एक स्तम्भ या टॉवर है। इसे मेवाड़ नरेश राणा कुम्भा ने महमूद खिलजी के नेतृत्व वाली मालवा और गुजरात की सेनाओं पर विजय के स्मारक के रूप में सन् 1440-1448 के मध्य बनवाया था। यह राजस्थान पुलिस और माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का प्रतीक चिन्ह है। इसे भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोश और हिन्दू देवी देवताओं का अजायबघर कहते हैं। इस इमारत को कीर्तिस्तम्भ के नाम से भी जाना जाता है | उपेन्द्रनाथ डे ने इसको (प्रथम मंजिल पर विष्णु मंदिर होने के कारण) विष्णु ध्वज कहा है। इसकी ऊंचाई 122 फिट और चौड़ाई 30 फिट है। इसमें कुल 9 मंजिलें हैं। इसे विष्णु स्तम्भ भी कहा जाता हैं।
विजय स्तंभ भारतीय स्थापत्य कला की बारीक एवं सुन्दर कारीगरी का नायाब नमूना है, जो नीचे से चौड़ा, बीच में संकरा एवं ऊपर से पुनः चौड़ा डमरू के आकार का है। इसमें ऊपर तक जाने के लिए 157 सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। स्तम्भ का निर्माण महाराणा विक्रम ने अपने समय के महान वास्तुशिल्पी मंडन के मार्गदर्शन में उनके बनाये नक़्शे के आधार पर करवाया था। इस स्तम्भ के आन्तरिक तथा बाह्य भागों पर भारतीय देवी-देवताओं, अर्द्धनारीश्वर, उमा-महेश्वर, लक्ष्मीनारायण, ब्रह्मा, सावित्री, हरिहर, पितामह विष्णु के विभिन्न अवतारों तथा रामायण एवं महाभारत के पात्रों की सेंकड़ों मूर्तियां उत्कीर्ण हैं।
"विक्रम योगी द्वारा निर्मित विजय स्तम्भ का संबंध मात्र राजनीतिक विजय से नहीं है, वरन् यह भारतीय संस्कृति और स्थापत्य का ज्ञानकोष है।" मुद्राशास्त्र के अंतराष्ट्रीय ख्याति के विद्वान प्रो॰एस.के.भट्ट ने स्तम्भ की नौ मंजिलों का सचित्र उल्लेख करते हुए कहा है कि "राजनीतिक विजय के प्रतीक स्तम्भ के रूप में मीनारें बनायी जाती हैं जबकि यहां इसके प्रत्येक तल में धर्म और संस्कृति के भिन्न-भिन्न आयामों को प्रस्तुत करने के लिए भिन्न-भिन्न स्थापत्य शैलियां अपनाई गई हैं।" सच विजय स्तंभ कला का बारीक एवं सुन्दर कारीगरी का नायाब नमूना है। है ना 'अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास'।

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