अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास - भाग 2
-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू. एस. ए
'अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास' के दूसरे भाग में अद्भुत शिल्पकला व वास्तुकला के निर्माण के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे जिसे बादामी गुफा के नाम से जाना जाता है।
बादामी गुफा मंदिर, भारत के कर्नाटक के उत्तरी भाग में बागलकोट जिले के एक शहर बादामी में स्थित हमारी कई संस्कृतियों का समावेश लिए बादामी गुफा कई मंदिरों का एक परिसर है। यह गुफाएं चट्टानों को काटकर बनाने की वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। यह 6वीं शताब्दी से हैं जोकि चालुक्य वास्तुकला की उत्कृष्ट रचना हैं। 1500 सालों से यह गुफाएं अपनी बेजोड़ वास्तु कला से सभी को आश्चर्यचकित कर रही हैं। बादामी को पहले वातापी के नाम से जाना जाता था, जो प्रारंभिक चालुक्य वंश की राजधानी थी, जिसने 6वीं से 8वीं शताब्दी तक कर्नाटक पर शासन किया था। बादामी एक मानव निर्मित झील के पश्चिमी तट पर स्थित है, जो पत्थर की सीढ़ियों के साथ एक दीवार से घिरा है।
अब बात करें इन गुफाओं की उत्कृष्ट वास्तुकला की, तो बलुआ पत्थर से बनी इन गुफाओं की संख्या 1 से 4 तक है। गुफा न. 1 में हिंदू देवी-देवताओं और प्रसंगों की विभिन्न मूर्तियों के बीच नटराज के रूप में तांडव-नृत्य करते हुए भगवान शिव की एक प्रमुख नक्काशी है। गुफा न. 2 ज्यादातर अपने अभिन्यास और आयामों के संदर्भ में गुफा न. 1 के समान है, जिसमें हिंदू प्रसंगों की विशेषता है, जिसमें भगवान विष्णु की त्रिविक्रम के रूप में उभड़ी हुई नक्काशी सबसे बड़ी है। गुफा न. 3 सबसे बड़ी है, जिसमें भगवान विष्णु से संबंधित पौराणिक कथाएं उकेरी गई हैं, और यह परिसर में सबसे जटिल नक्काशीदार गुफा भी है। गुफा न. 4 जैन धर्म के प्रतिष्ठित लोगों को समर्पित है। 2015 में चार मुख्य गुफाओं से लगभग 500 मीटर (1,600 फीट), 27 हिंदू नक्काशियों के साथ एक अन्य गुफा की खोज हुई थी जिसके स्तंभ और पत्थर पर उकेरी गयीं कलाकृतियां अत्यंत मोहक हैं।
यह गुफाएं इस बात का प्रतीक हैं की हजारों सालों से हमारा भारत ना केवल सांस्कृतिक बल्कि महान सभ्यताओं के सागर का समावेश है। इस स्तर की वास्तुकला आज बनाना भी बहुत जटिल है। जरा सोचिए 1500 साल पहले इतनी उत्कृष्ट रचना करना हमारे पूर्वजों के लिए कैसे संभव रहा होगा। है ना अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास!
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