Thursday, 6 August 2020

अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास:एलोरा की गुफाएं

अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास-भाग 9



-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर

-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू. एस. .



पिछले भाग में हमने अजंता की गुफाओं के बारे में जानकारी प्राप्त की थी। अतुल्य भारत के अद्भुत इतिहास के नौवें भाग में एलोरा की गुफाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। एलोरा की गुफाएं पर्यटकों को सबसे ज्यादा अपनी ओर आकर्षित करती हैं। स्थानीय लोगों द्वारा वेरुल लेनी के नाम से जानी जाने वाली ऐलोरा गुफाएं भारत में महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद से 30 किमी दूर चालीसगांव में स्थित यूनेस्को द्वारा घोषित एक विश्व विरासत स्थल है। एलोरा गुफाओं की प्राचीन खूबसूरती देश तथा विदेशी पर्यटकों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है। 

          गुफाएं 600-1000 सी.. की अवधि के जैन धर्म, बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म की कलाकृति और स्मारकों को प्रदर्शित करती हैं। गुफाओं व मंदिरों के समूह में एक कैलाश मंदिर है, यह 16वीं गुफा में स्थित एकल पत्थर की खुदाई का एक बेहतरीन नमूना है। यह दुनिया भर में सबसे बड़ी एकल अखंड रॉक खुदाई, कैलाश मंदिर, शिव को समर्पित एक रथ के आकार के स्मारक के लिए जाना जाता है। एल्लोरा गुफा में कैलाश मंदिर की खुदाई में वैष्णववाद, शक्तिवाद के अलावा दो प्रमुख हिंदू महाकाव्यों का सारांश देने वाले राहत पैनल के साथ-साथ देवी, देवताओं और पौराणिक कथाओं को प्रदर्शित करने वाली मूर्तियां स्थित हैं। इस मंदिर में बहुत से हिंदू देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियां भी हैं। 

        ऐलोरा गुफाओं के इस समूह में कुल 100 गुफाएं हैं जिनमें से सिर्फ 34 गुफाएं ही पर्यटकों के देखने के लिए हैं। पर्यटकों के लिए खुली इन 34 गुफाओं में 5 जैन, 17 हिंदु और 12 बौद्ध धर्म की गुफाएं हैं। ये सभी गुफाएं प्राचीन काल के लोगों की अपने धर्म के प्रति धार्मिक भाव व्यक्त करती हैं। राष्ट्रकूट राजवंश ने बौद्ध और हिंदू गुफाओं का निर्माण किया, जबकि, यादव वंश ने जैन गुफाओं का निर्माण किया। इन गुफाओं के प्रार्थना धाम, तीर्थयात्रियों और साधु-संतों के आराम करने का स्थान जैसे कई उद्देश्य थे। सैकड़ों साल पुरानी इन गुफाओं की कलाकृति, शिल्पकला अत्यंत मनमोहक है। जो हमारी सभ्यता संस्कृति और इतिहास को दर्शाती है। है ना! अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास।







अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास: अजंता की गुफा

अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास-भाग 8


-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर

-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू. एस. .


'अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास' के आठवें भाग में आज हम बात करेंगे अजंता की गुफाओं की। अजंता की गुफा महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद शहर से लगभग 105 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अजंता की प्राचीन गुफाएं भारत में सबसे ज्यादा देखे जाने वाले पर्यटक स्थलों में से एक हैं जो भारतीय गुफा कला का सबसे महान जीवित उदाहरण है। यह गुफाएं, एलोरा गुफाओं की तुलना में भी काफी पुरानी हैं। अजंता की गुफाएं वाघुर नदी के किनारे एक घोड़े की नाल के आकार के चट्टानी क्षेत्र को काटकर बनाई गई हैं। इस घोड़े के नाल के आकार के पहाड़ पर 26 गुफाओं का एक संग्रह है। इन सभी गुफाओं की खुदाई लगभग U-आकार की खड़ी चट्टान पर की गई है जिसकी ऊंचाई लगभग 76 मीटर है। इन गुफाओं को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है। इन गुफाओं की कलाकारी और सुंदरता अद्भुत है।

अजंता की गुफाएँ बौद्ध गुफा स्मारक हैं जो कि दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर लगभग 480 .पू. से स्थित हैं। यह गुफाएँ अजंता नामक गाँव के पास स्थित हैं। अजंता की गुफाएं मुख्य रूप से बौद्ध गुफाएं हैं, जिसमें बौद्ध धर्म की कला कृतियाँ हैं। इन गुफाओं का निर्माण दो चरणों में हुआ है। पहले चरण में सातवाहन और इसके बाद वाकाटक शासक वंश के राजाओं ने इसका निर्माण करवाया। पहले चरण की अजंता गुफाओं का निर्माण दूसरी शताब्दी के समय हुआ था और दूसरे चरण की गुफाओं का निर्माण 460-480 ईसवी में हुआ था। पहले चरण में  9, 10, 12, 13 और 15 A की गुफाओं का निर्माण हुआ था। दूसरे चरण में 20 गुफा मंदिरों का निर्माण किया गया। पहले चरण को गलती हीनयान कहा गया था, इसका सम्बन्ध बौद्ध धाम के हीनयान मत से है। इस चरण की खुदाइयों में भगवान् बुद्ध को स्तूप से संबोधित किया गया है। दूसरे चरण की खुदाई लगभग 3 शताब्दी के बाद की गई। इस चरण को महायान चरण कहा गया। कई लोग इस चरण को वतायक चरण भी कहते हैं। जिसका नाम वत्सगुल्म के शासित वंश वाकाटक के नाम पर पड़ा है।

इन गुफाओं में प्राचीन चित्रकला और मूर्तिकला का बेहतरीन नूमना देखने को मिलता है जिसे भारतीय चित्रकला कला और मूर्ति की कलाकारी का सबसे बेहतरीन उदाहरण माना जाता है। अजंता की गुफाएँ बौद्ध युग के बौद्ध मठ या स्तूप हैं। यह वो जगह है जहाँ बौद्ध भिक्षु रहा करते थे इसके साथ वो यहां अध्ययन और प्रार्थना करते थे। अजंता की गुफाओं का नाम भारत में सबसे ज्यादा देखें जाने वाले पर्यटन स्थल में आता है। यहाँ हर साल बड़ी संख्या में लोग आते हैं। अजंता की गुफाओं के चैत्य गृह में सुंदर चित्र, छत और बड़ी खिड़कियां हैं। पहले खुदाई में मिली गुफाएं दक्कन में पाई जाने वाली गुफाओं कोंडेन, पिटालखोरा, नासिक की तरह है। इन गुफाओं को बनाने का दूसरा चरण चौथी शताब्दी में शुरू हुआ था जो वताको के शासन के समय बनाई गई थी। यह गुफाएं सबसे खूबसूरत और कलात्मक थीं। इस चरण की गुफाओं में ज्यादातर पेंटिंग का काम किया गया था। सैकड़ों साल पुरानी यह गुफाएं इतनी मनमोहक हैं कि इन्हें देखने का आनंद देखते ही बनता है। है ना! 'अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास'





अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास: विजय स्तंभ

अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास-भाग 7



-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर

-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू. एस. .




'अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास' के सातवें भाग में हम 'विजय स्तंभ' के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। विजय स्तंभ भारत के राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित एक स्तम्भ या टॉवर है। इसे मेवाड़ नरेश राणा कुम्भा ने महमूद खिलजी के नेतृत्व वाली मालवा और गुजरात की सेनाओं पर विजय के स्मारक के रूप में सन् 1440-1448 के मध्य बनवाया था। यह राजस्थान पुलिस और माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का प्रतीक चिन्ह है। इसे भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोश और हिन्दू देवी देवताओं का अजायबघर कहते हैं। इस इमारत को कीर्तिस्तम्भ के नाम से भी जाना जाता है | उपेन्द्रनाथ डे ने इसको (प्रथम मंजिल पर विष्णु मंदिर होने के कारण) विष्णु ध्वज कहा है। इसकी ऊंचाई 122 फिट और चौड़ाई 30 फिट है। इसमें कुल 9 मंजिलें हैं। इसे विष्णु स्तम्भ भी कहा जाता हैं।

विजय स्तंभ भारतीय स्थापत्य कला की बारीक एवं सुन्दर कारीगरी का नायाब नमूना है, जो नीचे से चौड़ा, बीच में संकरा एवं ऊपर से पुनः चौड़ा डमरू के आकार का है। इसमें ऊपर तक जाने के लिए 157 सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। स्तम्भ का निर्माण महाराणा विक्रम ने अपने समय के महान वास्तुशिल्पी मंडन के मार्गदर्शन में उनके बनाये नक़्शे के आधार पर करवाया था। इस स्तम्भ के आन्तरिक तथा बाह्य भागों पर भारतीय देवी-देवताओं, अर्द्धनारीश्वर, उमा-महेश्वर, लक्ष्मीनारायण, ब्रह्मा, सावित्री, हरिहर, पितामह विष्णु के विभिन्न अवतारों तथा रामायण एवं महाभारत के पात्रों की सेंकड़ों मूर्तियां उत्कीर्ण हैं।

"विक्रम योगी द्वारा निर्मित विजय स्तम्भ का संबंध मात्र राजनीतिक विजय से नहीं है, वरन् यह भारतीय संस्कृति और स्थापत्य का ज्ञानकोष है।" मुद्राशास्त्र के अंतराष्ट्रीय ख्याति के विद्वान प्रो॰एस.के.भट्ट ने स्तम्भ की नौ मंजिलों का सचित्र उल्लेख करते हुए कहा है कि "राजनीतिक विजय के प्रतीक स्तम्भ के रूप में मीनारें बनायी जाती हैं जबकि यहां इसके प्रत्येक तल में धर्म और संस्कृति के भिन्न-भिन्न आयामों को प्रस्तुत करने के लिए भिन्न-भिन्न स्थापत्य शैलियां अपनाई गई हैं।" सच विजय स्तंभ कला का बारीक एवं सुन्दर कारीगरी का नायाब नमूना है। है ना 'अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास'





अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास: नटराज मंदिर

अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास-भाग 6



-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर

-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू. एस. .




'अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास' के छठे भाग में एक ऐसे सुंदर मंदिर के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे जो धार्मिक, सांस्कृतिक व अद्भुत शिल्पकला को दर्शाता है। वह स्थान है, तमिलनाडु के चिदंबरम में स्थित 'नटराज मंदिर'। मान्यता है कि कैलाश पति ने इस पवित्र स्थान को अपनी सभी शक्तियों से उपकृत किया है तथा इसका सृजन भी उन्हीं के द्वारा किया गया है। पुराणों के मुताबिक भगवान शिव यहां प्रणव मंत्र '' के आकार में विराजमान हैं। यही वजह है कि आराधक इसे सबसे अहम मानते हैं। चिदंबरम भगवान शिव के पाँच क्षेत्रों में से एक है। इसे शिव का आकाश क्षेत्र कहा जाता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश) से मानव शरीर का निर्माण हुआ है। नटराज मंदिर को 'अग्नि मूल' के नाम से भी जाना जाता है। कई उपासक मानते हैं कि भोलेनाथ यहाँ ज्योति रूप में प्रकट हुए थे। भगवान शिव के अन्य चार क्षेत्र १.कालाहस्ती (आंध्र प्रदेश) अर्थात् वायु, .कांचीपुरम यानी पृथ्वी, .तिरुवनिका- जल और ४.अरुणाचलेश्वर (तिरुवनामलाई) अर्थात् अग्नि शामिल हैं।

मंदिर के केंद्र और अम्बलम के सामने भगवान शिवकाम सुंदरी (पार्वती) के साथ स्थापित हैं। मंदिर की संरचना अपने आप में आकर्षक और विशिष्ट है। चार सुंदर और विशाल गुंबदों ने संपूर्ण मंदिर को भव्य स्वरूप प्रदान किया है। मंदिर की आंतरिक साज-सज्जा, शिल्पकारी और इसका व्यापक क्षेत्रफल इसे अनन्य रूप देते हैं। शिव के नटराज स्वरूप के नृत्य का स्वामी होने के कारण भरतनाट्यम के कलाकारों में भी इस जगह का खास स्थान है। मंदिर की बनावट इस तरह है कि इसके हर पत्थर और खंभे पर भरतनाट्यम नृत्य की मुद्राएँ अंकित हैं।

मंदिर शिव क्षेत्रम के रूप में भी प्रसिद्ध है। यहाँ भगवान गोविंदाराज की प्रतिमा भी है, जो शिव के बिलकुल निकट स्थापित हैं। मंदिर में एक बहुत ही खूबसूरत तालाब और नृत्य परिसर भी है। जहां हर साल नृत्य महोत्सव का आयोजन किया जाता है जिसमें देशभर से कलाकार हिस्सा लेते हैं। यह स्थान धार्मिक, सांस्कृतिक व उत्कृष्ट शिल्पकला को दर्शाता है। है ना 'अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास'





अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास: 'पुरी' (जगन्नाथ पुरी मंदिर)

अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास-भाग 5



-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर

-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू. एस. .



'अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास' के पांचवें भाग में एक ऐसी सुंदर जगह के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे जो धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती है। यह स्थान भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर 'पुरी' (जगन्नाथ पुरी मंदिर) है। पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर भगवान जगन्नाथ (श्री कृष्ण) को समर्पित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ 'जगत के स्वामी' होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है। इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में से एक माना जाता है। इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव अति प्रसिद्ध है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ (श्री कृष्ण), उनके बड़े भ्राता बलराम और भगिनी सुभद्रा, तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं। मध्य-काल से ही यह उत्सव बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इसके साथ ही यह उत्सव भारत के अनेक कृष्ण मंदिरों में मनाया जाता है, एवं यात्रा निकाली जाती हैं।

गंग वंश के हाल ही में अन्वेषित ताम्र पत्रों से यह ज्ञात हुआ है, कि वर्तमान मंदिर के निर्माण कार्य को कलिंग राजा अनन्तवर्मन चोडगंग देव ने आरम्भ कराया था। मंदिर के जगमोहन और विमान भाग इनके शासन काल (1078 - 1148) में बने थे। फिर सन् 1197 में जाकर उड़िया शासक अनंग भीम देव ने इस मंदिर को वर्तमान रूप दिया था। मंदिर में जगन्नाथ अर्चना सन् 1558 तक होती रही। इस वर्ष अफगान जनरल काला पहाड़ ने ओडिशा पर हमला किया और मूर्तियां तथा मंदिर के भाग ध्वंस किए और पूजा बंद करा दी, तथा विग्रहो को गुप्त रूप से चिलिका झील मे स्थित एक द्वीप मे रखा गया। बाद में, रामचंद्र देब के खुर्दा में स्वतंत्र राज्य स्थापित करने पर, मंदिर और इसकी मूर्तियों की पुनर्स्थापना करवाई।

तब से यहां विस्तृत दैनिक पूजा-अर्चनाएं होती हैं। यहां कई वार्षिक त्यौहार भी आयोजित होते हैं, जिनमें सहस्रों लोग भाग लेते हैं। इनमें सर्वाधिक महत्व का त्यौहार है, रथ यात्रा, जो आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया को, तदनुसार लगभग जून या जुलाई माह में आयोजित होता है। इस उत्सव में तीनों मूर्तियों को अति भव्य और विशाल रथों में सुसज्जित कर यात्रा पर निकालते हैं। यह यात्रा ५ किलोमीटर लम्बी होती है। भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद पाने के लिए इसमें लाखों लोग सम्मिलित होते हैं। इस रथ यात्रा की शोभा देखने लायक होती है। यह स्थान धार्मिक व सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण व अद्भुत है। है ना 'अतुल्य भारत का अद्भुत इतिहास'