ज़िंदगी की दौड़ती गाड़ी में एक ब्रेक ज़रूरी था
-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू. एस. ए.
ऐ इंसान इतनी दौड़ भाग न कर तू,
तनिक रुक थोड़ा-सा विश्राम कर तू,
दिनभर दौड़ता है दो वक्त की रोटी कमाने के लिए,
तेरे पास तो वक्त भी नहीं अपनों के साथ बैठकर खाने के लिए,
इस दौड़ भाग को ज़रा रुकना ज़रूरी था,
इसीलिए...
ज़िंदगी की दौड़ती गाड़ी में एक ब्रेक ज़रूरी था।
थोड़ा वक्त निकाल परिवार के साथ बैठ, हंस-बोल तू,
बीवी की शिकायत दूर कर थोड़ी बच्चों की ज़िद पूरी कर तू,
हां पता है तेरे पास वक्त नहीं है बड़ा व्यस्त है तू,
पर कुछ पल शांति के मां-बाप के पास बैठ गुज़ार तू,
थोड़ी देर से ही सही पर परिवार के लिए वक्त निकालना ज़रूरी था,
इसलिए…..
ज़िंदगी की दौड़ती गाड़ी में एक ब्रेक ज़रूरी था।
स्वच्छता के साथ रहना और शुद्ध हवा में श्वास लेना भूल-सा गया था तू,
जंक फूड और कोल्ड ड्रिंक पर ही मानो जी रहा था तू,
देख प्रकृति कितनी खुश है अभी कुछ वक्त और दौड़ती ज़िंदगी पर ब्रेक लगा कर रख तू,
न जाने क्यों अपनी ज़रूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर रहता था तू,
तेरी खुद से पहचान कर तुझे आत्मनिर्भर बनाना था,
इसीलिए…..
जिंदगी की दौड़ती गाड़ी में एक ब्रेक ज़रूरी था।
आधुनिक विकास की दौड़ में खुद को संसार का मालिक समझ रहा था तू,
देख प्रकृति ने भी दिखा दिया मालिक नहीं इस संसार का सिर्फ मेहमान है तू,
जो बोओगे वही काटोगे का परिणाम आज देख रहा है तू,
अभी वक्त है संभल जा नहीं तो अपने ही मुंह की खाएगा तू,
प्रकृति को तुझे तेरी सही राह दिखाना ज़रूरी था,
इसीलिए…
ज़िंदगी की दौड़ती गाड़ी में एक ब्रेक ज़रूरी था।
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