Friday, 12 July 2019

श्री गुरुवे नमः | Hindi

श्री गुरुवे नमः


-सौ भक्ति सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू. एस. .

गुरुब्रह्मा, गुरुविष्णु:, गुरुर्दवो महेश्वर:
गुरु साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्री गुरवे नमः।।

                  जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए अर्थात् अज्ञान दूर कर मनुष्य को ज्ञान प्रदान करे वही 'गुरु' है। वास्तव में गुरु की महिमा का पूरा वर्णन कोई नहीं कर सकता। गुरु की महिमा तो भगवान से भी कहीं अधिक है। शास्त्रों में गुरु का महत्व बहुत ऊंचा है। गुरु शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है 'गु' का अर्थ है अंधकार (अज्ञान) एवं 'रु' का अर्थ है प्रकाश (ज्ञान)। गुरु मनुष्य को अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाता है। मनुष्य के जीवन में उसके प्रथम गुरु उसके माता-पिता होते हैैं। जो उसका इस संसार से परिचय करवाते हैं। बोलना, चलना, लिखना आदि अन्य कार्य उसे सिखाते है व अपने संस्कारों का ज्ञान देते हैं। अतः माता-पिता का स्थान सर्वोपरि है। परंतु भावी जीवन का निर्माण गुरुद्वारा ही किया जाता है। ज्ञान के बिना जीवन निरर्थक है और ज्ञान केवल गुरु से ही प्राप्त हो सकता है। इसलिए जीवन में गुरु का स्थान व महत्व बहुत ऊंचा है। हर वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा के दिन हिंदू धर्म के अनुसार गुरु पूर्णिमा जो एक बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व भारत के पौराणिक इतिहास के महान संत ऋषि व्यास की स्मृति में मनाया जाता है। ऋषि व्यास ने वेदों की रचना की थी। इस दिन को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को समूचे भारतवर्ष में सभी गुरुजनों और शिक्षकों का सम्मान व उनकी वंदना कर मनाया जाता है।
                किसी भी व्यक्ति के सफलता में उसके गुरु की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। एक गुरु ही अपने शिष्य को सबसे उत्तम शिक्षा प्रदान करता है एवं भविष्य को सफल व सुनहरा बनाने हेतु मार्ग दिखाता है। गुरु अपने शिष्यों को ज्ञानवान, सुसंस्कृत तथा जीवन जीने की शिक्षा प्रदान करते हैं। शिष्यों अथवा विद्यार्थियों को अपने गुरु से ज्ञान प्राप्त करने हेतु श्रद्धा भाव से जाना चाहिए ताकि वे उत्तम ज्ञान अर्जित कर जीवन में सफल हो सकें। किसी ने सत्य ही कहा है 'श्रद्धावान लभते ज्ञानम्' अर्थात श्रद्धावान को ही ज्ञान प्राप्त होता है। गुरु का दायित्व बहुत बड़ा होता है व मानव-समाज को सही दिशा प्रदान करता है। तथा एक राष्ट्र के निर्माण में भी गुरु का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है। गुरु में अपने विद्यार्थियों के प्रति ऊंच-नीच, जातिगत भेदभाव, इर्षा आदि दुर्गुणों का कोई स्थान नहीं होता है। उनके लिए सभी शिष्य समान होते हैं। कबीर दास जी कहते हैं-
गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काई खोट। अंतर हाथ सहारि दे, बाहर मारे चोट।।
अर्थात् गुरु कुम्हार और शिष्य घड़ा है। जिस प्रकार कुम्हार घड़े को ढाल कर सुघड़ बनाता है उसी तरह गुरु भी विद्यार्थियों के दोषों का परिमार्जन करता है। गुरु विद्यार्थियों का शुभचिंतक होता है, वह बाहर से तो कठोर होता है किंतु अंदर से दयावान। अतः गुरु की डांट-फटकार को भी कड़वी दवाई की तरह अच्छा मान उसका सम्मान करना चाहिए।
                आजकल प्राचीन गुरु-शिष्य परंपरा भले ही समाप्त होती दिखाई दे रही हो परंतु शिक्षक का कर्तव्य अपनी जगह कायम है। शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यार्थियों को आज भी लगन, परिश्रम, त्याग, नियमबध्दता, विनम्रता जैसे गुणों को धारण करने की आवश्यकता होती है। शिक्षक विद्यार्थियों को ऐसे गुणों से युक्त करता है व उसका मार्गदर्शन करता है जो उसे जीवन जीने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं जैसे कि साहस, धैर्य, सहिष्णुता, इमानदारी आदि। आज शिक्षा का रुप अलग व बड़ा हो गया है जिसमें नैतिक शिक्षा के साथ-साथ विषय-ज्ञान और तकनीकी शिक्षा का समावेश भी है। अतः शिक्षक का भी विषय-ज्ञान और तकनीकी-ज्ञान में निपुण होना आवश्यक है। अध्ययनशीलता शिक्षकों का एक आवश्यक गुण है। वे निरंतर अध्ययन करते रहते हैं ताकि नई बातें सीख कर अपने विद्यार्थियों को बता सकें। वे अपने विद्यार्थियों को किसी भी विषय-वस्तु के बारे में इतने सरल व प्रभावी ढंग से समझाते हैं कि बच्चे उनकी बातों को आजीवन ध्यान में रख सकें। गुरु सदैव सादा जीवन और उच्च विचार के सिद्धांत का अनुसरण करते हैं। मनुष्य को सदैव अपने गुरु का सम्मान करना चाहिए व उनकी दी हुई शिक्षा का अपने जीवन में अनुसरण करते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए। कबीर जी कहते हैं -
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताए।।

आप सभी को गुरुपौर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।





4 comments:

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  2. "Guru krupa he kewalam shishy param mangalam"

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  3. सत्य है गुरु बिन ज्ञान नहीं मिलता है और सभी के प्रथम गुरु तो उनके माँ बाप ही होते हैं

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  4. सर्व प्रथम गुरूना नमस्कार.गुरू आणि शिष्यांनी आपलीं मर्यादा राखुन ठेवावी.पैशाचा मान वाढल्या मुळे गुरू शिष्याच्या नात्यात कमी पणा येतचालला आहे.म्हणुन गुरू नि पैश्याला महत्त्व न देता पैश्याच्या वर गुरू नि आपला मान ठेवला पाहिजे.

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