Saturday, 12 January 2019

परवरिश - सीख बचपन की | Hindi


परवरिश - सीख बचपन की
-    सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर

 
               कभी-कभी आप के जीवन में ऐसे पल आते हैं जो आपको कुछ अच्छी सीख और सोच दे जाते हैं। रोज़ की तरह अपने दिनचर्या के काम खत्म कर खाली वक्त में बैठकर एक फिल्म देख रही थी। वेसे तो आज-कल की फिल्मों में सीखने योग्य बातें कम ही होती हैं  परंतु इस फिल्म के एक दृश्य को देखकर अपने बचपन की एक सीख याद गई। दृश्य करीब सात साल की एक बच्ची और उसके पिता पर आधारित था जिसमें बच्ची अपने घर के अव्यवस्थित रखे सामान और वहां बिखरी वस्तूओं को अपने छोटे-छोटे हाथों से व्यवस्थित रखने की कोशिश कर रही थी। उसके पिता दूर खड़े यह सब देख रहे थे, उन्होंने करीब आकर उससे पूछा कि वह यह क्या कर रही है? तब उस बच्ची ने कहा, "पापा, जब मेरे खिलौने बिखरे होते हैं, तब उन्हें  ठीक से रखने में आप मेरी मदद करते हैं। आप ने ही तो मुझे मेरे खिलौनों को कैसे ठीक से रखना चाहिए ये सिखाया है और यह भी बताया है कि ऐसा कोई काम जिसे करने से किसी की मदद हो वह हमें जरूर करना चाहिए। बस, मैं भी आप की मदद करने की कोशिश कर रही हूं।" फिर बड़ी मासूमियत से अपने पापा का हाथ पकड़ कर वह बोली, "अब मैं बड़ी हो गई हूं पापा, मूझे सब पता है।" उस बच्ची की मासूमियत, सोच और समझ जानकर एक प्यारी-सी मुस्कान मेरे चेहरे पर भी ठीक उसी तरह से गई जिस तरह उसके पिता के चेहरे पर आई थी।
           यह देखकर मुझे भी मेरे बचपन की बातें याद गईं। सच, जब हम बच्चे होते हैं तब जल्दी से बड़ा होने का मन करता है। उस बच्ची के पिता की तरह बचपन में हर माता-पिता अपने बच्चों को इसी तरह अच्छी सीख और परवरिश देते हैं। जैसे, घर हाे या बाहर ज़रुरतमंदो की हमेशा मदद करना, बड़ों का सदैव आदर करना, समय का पाबंद बनना  और सदुपयोग करना, अपनी ज़िम्मेदारियों को समझना, आत्मनिर्भर बनना आदि। पर जब बच्चे बड़े होने लगते हैं तब बचपन की सिखाई गई बातें धुंधली-सी हो जाती हैं। कभी अनजाने में बड़ों का अनादर कर देते हैं और तो और, टीवी/मोबाइल की वजह से अपने परिवार, दोस्तों   ज़रूरी  कामों को वक्त नहीं दे पाते हैं। देर रात तक जागकर फिल्म देखना, मोबाइल पर गेम खेलना, आदि की वजह से सुबह देर से जागते हैं। यही कारण है कि अपने दूसरों के समय की कीमत नहीं कर पाते हैं। यहीं से अस्वस्थ अव्यवस्थित दिनचर्या की शुरुआत होती है। जिसके कारण आगे चलकर कई अनपेक्षित परिणाम भुगतने पड़ते हैं।
           आप ने 'early to bed and early to rise makes a man healthy, wealthy and wise ' तो सुना ही होगा। परंतु ऐसा ना करने के कारण हम अपनी ज़िम्मेदारियां समझ नहीं पाते हैं। कई बार बड़े भी अपने लाड़-प्यार के कारण बच्चों को उनकी ज़िम्मेदारीयों का एहसास नहीं होने देते। जिस के कारण बच्चे उन पर अधिक आश्रित होना शुरू कर देते हैं तथा कभी भी पूरी तरह से आत्मनिर्भर नहीं बन पाते। जिसका परिणाम वक्त आने पर वह अपने विवेक से निर्णय लेने में असमर्थ हो  जाते हैं जिसका गलत असर आने वाली पीढ़ियों में भी दिखाई देने लगता है। 
          इन्सान को हमेशा आत्मनिर्भर बनना चाहिए। यह सीख उसे बचपन से ही संस्कारों के साथ मिलनी चाहिए। फिर चाहे वह लड़का हो या लड़की यह गुण दोनों में समान रूप से होना चाहिए। आत्मनिर्भरता मनुष्य को हमेशा ज़िम्मेदार और अच्छा इंसान बनने में मदद करता है। यदि कल की सिखाई बातों को आज अमल में लाएंगे तो आने वाले कल में उन्हें अपने नए अनुभव के साथ सिखा पाएंगे।


13 comments:

  1. Excellent सही सीख है

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  2. Nice post. Giving very useful suggestion.

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  3. Very nice संस्कार
    Narendra Edlabadkar

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  4. Beautifully written
    Nimisha Gorakshakar

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  5. शाबाश् बहुत अच्छा है ।आगे भी ऐसा ही लिखते रहो ।
    कल्पना ।

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  6. Wah very nice thoughts Bhakti !!
    Continue with the same

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  7. येही भारत भारतीयता और हिंदु संस्कार है,ऐसे ही लिखती रहो
    हम तुम पर गर्व कर सकते है और तुम्हारे माता पिता को धन्यवाद देते है जिन्होने ये हीरा हमे दिया

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  8. भारतीय या यो कहे हिंदु संस्कार
    Keep it up

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  9. Amazing write up..!!!
    Anuj Rishi

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  10. Very Nice Thought...What we think is reflection of our upbringing .Keep it up Bhakti.....SHAISHAV BHATNAGAR

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  11. Very Nice thought and beautifully written. Keep writing 😊

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