Sunday, 31 May 2020

मां तो मां ही होती है

मां तो मां ही होती है

-सौ भक्ति सौरभ खानवलकर


मां तो मां ही होती है
मां तो वह शब्द है, जिसमें सारे सुखों की अनुभूति होती है।
फिर चाहे वह मां तुम्हारी जननी हो अथवा,
उसकी हो जिसकी तुम जीवनसंगिनी हो।

जो मां जन्म देती है वह सब कुछ सिखाती है,
पर उसकी सीख को जीवन में कैसे लाना
वह सासु मां ही सिखाती है।
बहू में सर्वगुण अवश्य हो सकते हैं,
पर उसके गुणों को संपन्न सासु मां का स्नेह ही कर सकता है।

आपके रूप में मैंने एक और मां है पाई,
जिस दिन मैं आपकी बेटे से ब्याही।
नमन आपको, अपने बेटे की रूप में जैसे मुझे सौंप दिया हो अपना कोई अंग,
वचन देती हूं सारी जिंदगी रहूंगी उसके संग।

दुआ है ईश्वर से यह हमारी,
ममता के आंचल में सदा ही रहे खुशहाली।
बहू के रूप में बेटी बन प्यार दूं यह मेरा वादा,
अपनी ममता और आशीर्वाद का हाथ हम पर बनाए रखना सदा।



किन शब्दों में कहूं मां कि तुम मेरे लिए क्या हो?

किन शब्दों में कहूं मां कि तुम मेरे लिए क्या हो?


*-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर*
कोलंबिया साउथ कैरोलिना यू एस ए

यूं तो मां शब्द कहने को बहुत छोटा है लेकिन इसकी व्याख्या करने जाए तो पूरा शब्दकोश ही खाली हो जाए। मां और बेटी के रिश्ते को दर्शाती मेरी एक छोटी सी कोशिश- 

किन शब्दों में कहूं मां कि तुम मेरे लिए क्या हो?
मां तुम मेरा विश्वास और हर एक श्वास हो।
मां शब्द को व्यक्त करें शब्दकोश में भी नहीं हैं इतने शब्द
फिर भी….
यह सोचा कि समेटकर स्मृतियों के सारे ताने-बाने,
लिखूं एक कविता मां तुम्हें उपहार देने।

तुम्हारी साड़ी के पल्लू का वह कोना
जिसे पकड़ कर मैं बड़ी हुई।
याद है वह धुंधला सा बचपन,
जब मां तुम ही सब कुछ थी और दूजा न कोई।
संसार की प्रत्येक वस्तु से
तुम ही ने तो थी पहचान कराई।

याद है मुझे तुम्हारी वह साड़ी,
जिसे पहनकर में इठलाती थी,
तुम जैसा साज-श्रृंगार कर,
मैं सारे घर में नाचती थी।
आज भी याद है हर एक बात,
जो तुम सिखलाती थी।

मां तुम ही प्रथम गुरु हो,
तुम्हारे ही आंचल में संसार का सारा सुख है समाया।
मां तुम ही तपती अग्नि,
और तुम ही हो शीतल छाया।
तुम्हारी ममता के साथ,
तुम्हारे रूप में मैंने एक सखी को भी पाया।

इन अनगिनत बातों का कहां है कोई अंत
बस फिर से इतना ही कहना चाहूंगी कि…
किन शब्दों में कहूं की मां तुम मेरे लिए क्या हो??

मां तुम मेरा विश्वास और हर एक श्वास हो।

ज़िंदगी की दौड़ती गाड़ी में एक ब्रेक ज़रूरी था

ज़िंदगी की दौड़ती गाड़ी में एक ब्रेक ज़रूरी था



-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू. एस. ए.

ऐ इंसान इतनी दौड़ भाग न कर तू,
तनिक रुक थोड़ा-सा विश्राम कर तू,
दिनभर दौड़ता है दो वक्त की रोटी कमाने के लिए,
तेरे पास तो वक्त भी नहीं अपनों के साथ बैठकर खाने के लिए,
इस दौड़ भाग को ज़रा रुकना ज़रूरी था,
इसीलिए...
ज़िंदगी की दौड़ती गाड़ी में एक ब्रेक ज़रूरी था।

थोड़ा वक्त निकाल परिवार के साथ बैठ, हंस-बोल तू,
बीवी की शिकायत दूर कर थोड़ी बच्चों की ज़िद पूरी कर तू,
हां पता है तेरे पास वक्त नहीं है बड़ा व्यस्त है तू,
पर कुछ पल शांति के मां-बाप के पास बैठ गुज़ार तू,
थोड़ी देर से ही सही पर परिवार के लिए वक्त निकालना ज़रूरी था,
इसलिए…..
ज़िंदगी की दौड़ती गाड़ी में एक ब्रेक ज़रूरी था।

स्वच्छता के साथ रहना और शुद्ध हवा में श्वास लेना भूल-सा गया था तू,
जंक फूड और कोल्ड ड्रिंक पर ही मानो जी रहा था तू,
देख प्रकृति कितनी खुश है अभी कुछ वक्त और दौड़ती ज़िंदगी पर ब्रेक लगा कर रख तू,
न जाने क्यों अपनी ज़रूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर रहता था तू,
तेरी खुद से पहचान कर तुझे आत्मनिर्भर बनाना था,
इसीलिए…..
जिंदगी की दौड़ती गाड़ी में एक ब्रेक ज़रूरी था।

आधुनिक विकास की दौड़ में खुद को संसार का मालिक समझ रहा था तू,
देख प्रकृति ने भी दिखा दिया मालिक नहीं इस संसार का सिर्फ मेहमान है तू,
जो बोओगे वही काटोगे का परिणाम आज देख रहा है तू,
अभी वक्त है संभल जा नहीं तो अपने ही मुंह की खाएगा तू,
प्रकृति को तुझे तेरी सही राह दिखाना ज़रूरी था,
इसीलिए…
ज़िंदगी की दौड़ती गाड़ी में एक ब्रेक ज़रूरी था।