Friday, 26 July 2019

कोई भी कार्य बड़ा या छोटा नहीं होता | Hindi


कोई भी कार्य बड़ा या छोटा नहीं होता




-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू. एस. .



           इस संसार में जिस प्रकार प्रत्येक मनुष्य एक दूसरे से भिन्न दिखते हैं। उनकी आदतें भिन्न होती है। उसी प्रकार मनुष्य की कार्यक्षमता अथवा कार्य भी अलग-अलग होते है। तथा वह व्यक्ति स्वयं के कार्य में पूर्णतः निपुण व कार्य संबंधित ज्ञान रखता है। प्रत्येक मनुष्य की रुचि व विचार अलग होने के कारण उन्हें क्या कार्य करना है वे स्वयं ही इस बात का निर्णय लेते हैं। किसी भी प्रकार का कार्य कभी छोटा या बड़ा नहीं होता। यदि प्रत्येक मनुष्य यही विचार करने लगे कि उसके द्वारा किए जाने वाला कार्य ही श्रेष्ठ है और अन्य लोगों द्वारा किया जाने वाला कार्य उसके कार्य से कम है अथवा तुच्छ है तो मनुष्य की यह सोच पूर्णतः गलत है। यदि मनुष्य इसी तरह विचार करता रहेगा तो वह कभी भी दूसरों का आदर नहीं कर पाएगा और उनके कार्यों को तुच्छ समझ सदैव उनकी आलोचना व निंदा ही करता रहेगा।
           इस बात को यदि एक छोटी-सी कहानी के माध्यम से समझे तो शायद इस बात का मनुष्य एहसास कर पाएंगा कि कोई भी कार्य या कम आसान नहीं होता। कहानी कुछ इस प्रकार हैं-
एक मोहन नाम का मैकेनिक एक गराज चलाता था। वैसे तो मोहन एक अच्छा आदमी था। लेकिन उसके अंदर एक कमी थी। वह अपने काम को बड़ा और दूसरों के काम को हमेशा छोटा ही समझता था। एक बार एक हार्ट सर्जन अपनी लग्जरी कार लेकर उसके यहां सर्विसिंग करने पहुंचे। डॉक्टर से बातचीत करने के दौरान मोहन को पता चला कि यह कस्टमर एक हार्ट सर्जन है। तो उसने तुरंत पूछा डॉक्टर साहब," मैं यह सोच रहा था कि हम दोनों का काम एक जैसा ही है।" "एक जैसा! वह कैसे?" सर्जन ने थोड़ा अचरज से पूछा। "देखिए जनाब", मोहन कार के कॉम्प्लिकेटेड इंजन पर काम करते हुए बोला," यह इंजन कार का दिल है। मैं चेक करता हूं कि यह कैसे चल रहा है। मैं इसे खोलता हूं। इसके वाल्स फिट करता हूं। अच्छी तरह से सर्विसिंग कर के इसकी प्रॉब्लम्स खत्म करता हूं और फिर वापस जोड़ देता हूं। आप भी कुछ ऐसे ही करते हैं, क्यों??" "हम्म", सर्जन ने हामी भरी। "तो यह बताइए कि आपको मुझसे दस गुना अधिक पैसे क्यों मिलते हैं, काम तो आप भी मेरे जैसा ही करते हो?" मोहन ने खींचते हुए डॉक्टर की आलोचना करते हुए और अपने काम की डॉक्टर के काम से तुलना करते हुए यह प्रश्न किया। सर्जन ने एक क्षण सोचा और मुस्कुराते हुए बोला, "जो तुम कर रहे हो उसे चालू इंजन पर करके देखो समझ जाओगे।" मोहन को इससे पहले किसी ने ऐसा जवाब नहीं दिया था। अब वह अपनी गलती समझ चुका था।
         दोस्तों, हर एक काम का अपना महत्व होता है। अपने काम को बड़ा समझना ठीक है, पर दूसरों के काम को कभी-भी छोटा नहीं समझना चाहिए। व्यक्ति औरों के काम के बारे में बस ऊपरी तौर पर जानता हैं। लेकिन उसे करने में आने वाली कठिनाई के बारे में उसे कुछ नहीं पता होता। इसलिए किसी के काम को छोटा नहीं समझना चाहिए और उसका आदर करना चाहिए। दूसरों के कार्यों को छोटा ना समझना और अपनी तुलना किसी से नहीं करना ही मनुष्य को असल जिंदगी में महान आचरण वाला बनाता है।


कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता,
हर इंसान अपना काम बड़ी शिद्दत से करता है,
किसी के काम को या उस इंसान को मनुष्य की सोच ही छोटा या बड़ा बनाती है।





Monday, 22 July 2019

ऋतुओं की रानी - वर्षा | Hindi



ऋतुओं की रानी - वर्षा


-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर

-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू.एस..



          भारतवर्ष ऋतुओं का देश है। यहां पर प्रत्येक ऋतु प्राकृतिक शोभा के साथ आती है। अपने सौंदर्य की छठा को चारों ओर फैला देती है। सभी ऋतुओं की अपनी-अपनी विशेषताएँ और महत्व हैं, किंतु अपने मनोरम दृश्य तथा विविध उपयोगिता के कारण वर्षा ऋतु का अपना विशेष महत्व है। वर्षा ऋतु को ऋतुओं की रानी भी कहा जाता है। बारिश के पानी से पर्यावरण हरा-भरा, सुंदर, आकर्षक व शीतल हो जाता है। वर्षा ऋतु के आगमन से मन प्रसन्न हो जाता है। वर्षा ऋतु का मौसम लगभग सभी लोगों का पसंदीदा मौसम होता है। वर्षा झुलसा देने वाली भयंकर गर्मी के बाद राहत का एहसास लेकर आती है। यह मौसम मनुष्यों के साथ-साथ पशु-पक्षी व पेड़-पौधों के लिए भी एक वरदान की भांति है। वर्षा ऋतु का आगमन सावन के महीने में होता है और यह तीन महीने - श्रावण, आषाढ़ तथा भादो मास तक अपनी शोभा बनाए रखती है। इस मौसम में कई मुख्य त्योहार भी आते हैं जिन्हें भारत में धूमधाम से मनाया जाता है।
          वर्षा ऋतु की सौंदर्यता का जितना वर्णन किया जाए उतना कम है। जैसे ही वर्षा की बूंदें जमीन पर पड़ने लगती है वैसे ही अद्भुत भीनी-भीनी सुगंध उठने लगती है। पेड़-पौधों में नया जीवन आ जाता है और वे हरे-भरे हो जाते हैं तथा पक्षी भी चहकने लगते हैं। इनके अलावा इस मौसम में बनने वाले इंद्रधनुष की बात ही कुछ और है। यह मौसम बच्चों में भी खूब उमंग लेकर आता है। बारिश में नहाने के साथ-साथ कागज़ से बनी हुई नाव को पानी से भरे छोटे-छोटे गड्ढों में चलाने का अपना अलग ही एक मज़ा होता है। यही तो वह मौसम होता है जिसमें हर इंसान अपना बचपन पूरी तरह से जीता है। आम जनजीवन के अलावा वर्षा ऋतु का सबसे अधिक महत्व किसानों के लिए है क्योंकि खेती के लिए पानी की अत्यधिक आवश्यकता होती है जिससे फसलों को पानी की कमी ना हो। वर्षा से फसलों के लिए पानी मिलता है तथा सूखे हुए कुएँ, तालाब, नदियां तथा झरने आदि जल से भर उठते हैं। यह मौसम किसानों के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण होता है। भारत में किसानों के लिए इंद्रदेव का बहुत महत्व है क्योंकि इंद्रदेव को वर्षा ऋतु का स्वामी माना जाता है। किसान इस मौसम में फसलों की तंदुरुस्ती के लिए भगवान इंद्रराज से अच्छी वर्षा की प्रार्थना करते हैं। फसलों की सिंचाई व खेतों को जोतने का कार्य वर्षा ऋतु के मौसम में ही किया जाता है।
          वर्षा ऋतु के कई फायदे है तो कई नुकसान भी है। एक तरफ यह लोगों को गर्मी से राहत देती है और किसानों के लिए फसल के लिहाज से भी बहुत फायदेमंद है वहीं दूसरी ओर इससे कई संक्रामक बीमारियों के फैलने का डर बना रहता है। जैसे कई प्रकार के त्वचा रोग, डायरिया, पेचिश, टाइफाइड और पाचन से संबंधित परेशानियां सामने आती है। इस कारण लोग अधिक बीमार पड़ते हैं। इसलिए इस ऋतु में लोगों को सावधानी से रहना चाहिए। बारिश का आनंद लेने के साथ-साथ संक्रमित बीमारियों से किस तरह बचा जाए इसका भी ध्यान रखना चाहिए व बारिश के पानी को संचित करने के उपाय ढूंढने चाहिए ताकि वर्षा के मौसम के बाद अगले वर्ष वर्षा आने तक जल का अभाव ना हो। वर्षा ऋतु में स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के साथ रोज़मर्रा की जिंदगी में भी कई परेशानियां सामने आती है। कभी-कभी ज्यादा वर्षा हो जाने के कारण जल प्रलय की स्थिति निर्माण होती है। कई जगह ज्यादा बारिश के वजह से गांव डूब जाते हैं और जन-धन की भी हानि होती है। बहुत ज़्यादा वर्षा के कारण खेत भी डूब जाते हैं और फसलें नष्ट हो जाती है। जिसका नुकसान किसानों को उठाना पड़ता है।
         उपरोक्त चर्चित की गई सभी परेशानियां जो वर्षा ऋतु के कारण हमारे समक्ष आती हैं से कैसे निजात पाया जाए इस संबंध में सरकार, नगर निगम व आम जनता को आगे आकर जन चेतना फैलानी चाहिए। स्वास्थ्य संबंधी निःशुल्क स्वास्थ्य केंद्र खोलने चाहिए व जरूरतमंद लोगों तक बीमारियों से निजात पाने के लिए मुफ़्त में दवाइयों को उपलब्ध करवाना चाहिए। जलभराव के कारण जन-धन की हानि रोकने के लिए वर्षा ऋतु के आगमन के पूर्व ही नदी-नालों की साफ़-सफ़ाई करवानी चाहिए तथा गड्ढों को समय रहते भरवा देना चाहिए ताकि जल जमाव ना हो। तथा आम जनता को जल जमाव के कारण किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना ना करना पड़े।
         इस खूबसूरत मौसम का भरपूर आनंद उठाएं तथा अपना व अपनों का ध्यान रखें और सदैव स्वस्थ रहें। इस सुनहरे मौसम के लिए कुछ पंक्तियां-

सावन आया संग अपने हजारों खुशियां लाया।
आसमान में छाई काली घटा जैसे हो कोई बड़ी-सी छाया।

देख बरसते बादल को, पंछि ने भी पर लहराया।
झूम उठे वनस्पति को देख यह जग भी मुस्कुराया।


कागज़ की नाव लगी चलने पोखरों में,
भीग कर बरसात में, मैं फिर खो गया अपने बचपन में।


मिट्टी की सौंधी-सी खुशबू हरियाली है लाई,
देखो आसमान में सात रंग की चुनरिया लहराई।




Friday, 12 July 2019

श्री गुरुवे नमः | Hindi

श्री गुरुवे नमः


-सौ भक्ति सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू. एस. .

गुरुब्रह्मा, गुरुविष्णु:, गुरुर्दवो महेश्वर:
गुरु साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्री गुरवे नमः।।

                  जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए अर्थात् अज्ञान दूर कर मनुष्य को ज्ञान प्रदान करे वही 'गुरु' है। वास्तव में गुरु की महिमा का पूरा वर्णन कोई नहीं कर सकता। गुरु की महिमा तो भगवान से भी कहीं अधिक है। शास्त्रों में गुरु का महत्व बहुत ऊंचा है। गुरु शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है 'गु' का अर्थ है अंधकार (अज्ञान) एवं 'रु' का अर्थ है प्रकाश (ज्ञान)। गुरु मनुष्य को अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाता है। मनुष्य के जीवन में उसके प्रथम गुरु उसके माता-पिता होते हैैं। जो उसका इस संसार से परिचय करवाते हैं। बोलना, चलना, लिखना आदि अन्य कार्य उसे सिखाते है व अपने संस्कारों का ज्ञान देते हैं। अतः माता-पिता का स्थान सर्वोपरि है। परंतु भावी जीवन का निर्माण गुरुद्वारा ही किया जाता है। ज्ञान के बिना जीवन निरर्थक है और ज्ञान केवल गुरु से ही प्राप्त हो सकता है। इसलिए जीवन में गुरु का स्थान व महत्व बहुत ऊंचा है। हर वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा के दिन हिंदू धर्म के अनुसार गुरु पूर्णिमा जो एक बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व भारत के पौराणिक इतिहास के महान संत ऋषि व्यास की स्मृति में मनाया जाता है। ऋषि व्यास ने वेदों की रचना की थी। इस दिन को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को समूचे भारतवर्ष में सभी गुरुजनों और शिक्षकों का सम्मान व उनकी वंदना कर मनाया जाता है।
                किसी भी व्यक्ति के सफलता में उसके गुरु की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। एक गुरु ही अपने शिष्य को सबसे उत्तम शिक्षा प्रदान करता है एवं भविष्य को सफल व सुनहरा बनाने हेतु मार्ग दिखाता है। गुरु अपने शिष्यों को ज्ञानवान, सुसंस्कृत तथा जीवन जीने की शिक्षा प्रदान करते हैं। शिष्यों अथवा विद्यार्थियों को अपने गुरु से ज्ञान प्राप्त करने हेतु श्रद्धा भाव से जाना चाहिए ताकि वे उत्तम ज्ञान अर्जित कर जीवन में सफल हो सकें। किसी ने सत्य ही कहा है 'श्रद्धावान लभते ज्ञानम्' अर्थात श्रद्धावान को ही ज्ञान प्राप्त होता है। गुरु का दायित्व बहुत बड़ा होता है व मानव-समाज को सही दिशा प्रदान करता है। तथा एक राष्ट्र के निर्माण में भी गुरु का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है। गुरु में अपने विद्यार्थियों के प्रति ऊंच-नीच, जातिगत भेदभाव, इर्षा आदि दुर्गुणों का कोई स्थान नहीं होता है। उनके लिए सभी शिष्य समान होते हैं। कबीर दास जी कहते हैं-
गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काई खोट। अंतर हाथ सहारि दे, बाहर मारे चोट।।
अर्थात् गुरु कुम्हार और शिष्य घड़ा है। जिस प्रकार कुम्हार घड़े को ढाल कर सुघड़ बनाता है उसी तरह गुरु भी विद्यार्थियों के दोषों का परिमार्जन करता है। गुरु विद्यार्थियों का शुभचिंतक होता है, वह बाहर से तो कठोर होता है किंतु अंदर से दयावान। अतः गुरु की डांट-फटकार को भी कड़वी दवाई की तरह अच्छा मान उसका सम्मान करना चाहिए।
                आजकल प्राचीन गुरु-शिष्य परंपरा भले ही समाप्त होती दिखाई दे रही हो परंतु शिक्षक का कर्तव्य अपनी जगह कायम है। शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यार्थियों को आज भी लगन, परिश्रम, त्याग, नियमबध्दता, विनम्रता जैसे गुणों को धारण करने की आवश्यकता होती है। शिक्षक विद्यार्थियों को ऐसे गुणों से युक्त करता है व उसका मार्गदर्शन करता है जो उसे जीवन जीने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं जैसे कि साहस, धैर्य, सहिष्णुता, इमानदारी आदि। आज शिक्षा का रुप अलग व बड़ा हो गया है जिसमें नैतिक शिक्षा के साथ-साथ विषय-ज्ञान और तकनीकी शिक्षा का समावेश भी है। अतः शिक्षक का भी विषय-ज्ञान और तकनीकी-ज्ञान में निपुण होना आवश्यक है। अध्ययनशीलता शिक्षकों का एक आवश्यक गुण है। वे निरंतर अध्ययन करते रहते हैं ताकि नई बातें सीख कर अपने विद्यार्थियों को बता सकें। वे अपने विद्यार्थियों को किसी भी विषय-वस्तु के बारे में इतने सरल व प्रभावी ढंग से समझाते हैं कि बच्चे उनकी बातों को आजीवन ध्यान में रख सकें। गुरु सदैव सादा जीवन और उच्च विचार के सिद्धांत का अनुसरण करते हैं। मनुष्य को सदैव अपने गुरु का सम्मान करना चाहिए व उनकी दी हुई शिक्षा का अपने जीवन में अनुसरण करते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए। कबीर जी कहते हैं -
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताए।।

आप सभी को गुरुपौर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।





Friday, 5 July 2019

आरोग्यम् धनसंपदा | Hindi


आरोग्यम् धनसंपदा


-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया,साउथ कैरोलिना, यू. एस. .



           स्वस्थ, सुंदर और अच्छा शरीर किसे नहीं चाहिए? प्रत्येक व्यक्ति चाहता हैं कि वह सदैव स्वस्थ व निरोगी रहे। परंतु क्या इसके लिए हम कोई प्रयत्न करते हैं? आजकल की इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में किसी को भी अपने स्वास्थ्य या अपनी सेहत पर ध्यान देने का समय ही नहीं है। सुबह से लेकर रात तक हर कोई अपने कामकाज के लिए इधर से उधर भागते ही रहता है। ज्यादातर समय कंप्यूटर/मोबाइल के सामने बैठकर काम करने से अनेकों बीमारियों को हम जाने अनजाने में आमंत्रण देते हैं। मनुष्य पैसा कमाने के लिए भागदौड़ करता रहता है परंतु 'हेल्थ इज वेल्थ' अर्थात् 'हमारा अच्छा स्वास्थ्य ही हमारी असली पूंजी है' यह भूल जाता है। यदि स्वास्थ्य अच्छा है तो मनुष्य कोई भी कार्य सरलता से पूर्ण कर सकता है। प्रश्न यह उठता है कि शरीर को स्वस्थ किस तरह बनाया जाए?
             स्वस्थ शरीर का मतलब व्यायाम करने भर से नहीं है। स्वस्थ शरीर के लिए नियमित दिनचर्या का होना, व्यवस्थित व पौष्टिक आहर का होना अत्यंत आवश्यक है। कसरत कर लेने से हम हमारे शरीर में मौजूद अतिरिक्त वासा (फेट्स) को तो कम कर सकते हैं तथा शरीर को फुर्तीला व लचीला बना सकते हैं। परंतु पौष्टिक आहार व नियमित दिनचर्या से हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है जो हमें पूर्ण रूप से स्वस्थ व निरोगी बनाती है। मनुष्य के शरीर के अंग एक मशीन की तरह काम करते हैं। जैसे मशीन का रखरखाव ठीक तरह से ना किया जाए तो जल्द ही उसके कलपुर्जे खराब होने लगते हैं, ठीक वैसे ही यदि मनुष्य अपने शरीर को स्वस्थ व निरोगी रखने के लिए कोई प्रयत्न नहीं करेगा तो मशीन की तरह मनुष्य के अंग भी खराब होने लगेंगे। मशीन के कलपुर्जे तो बाज़ार में आसानी से उपलब्ध है परंतु मनुष्य के शरीर के अंगों का क्या? वे अनमोल हैं। शरीर के प्रत्येक अंग का कुछ न कुछ महत्वपूर्ण कार्य होता है जिससे मनुष्य का शरीर चलता है। जैसे, यदि मनुष्य सुबह का नाश्ता नहीं करता है तो उसका सीधा असर मनुष्य के पेट या उसके आमाशय पर पड़ता है। यदि मनुष्य चौबीस घंटों में दस ग्लास पानी नहीं पीता तो इसका विपरीत परिणाम किडनी पर दिखाई पड़ता है। यदि देर रात तक जागने से अर्थात् दस बजे तक नहीं सोने से और सूर्योदय तक नहीं उठने से गाॅल ब्लैडर पर असर पड़ता है। ठंडा व बासी भोजन खाने से छोटी आत को नुकसान होता है। ज्यादा तैलीय, मसालेदार व मांसाहारी भोजन खाने से बड़ी आत पर विपरीत असर होता है। जब मनुष्य सिगरेट और बीड़ी का सेवन करता है तो उसके धुएं से तथा गंदे व प्रदूषित वातावरण में सांस लेने से फेफड़ों पर असर होता है। भारी मात्रा में तला भोजन, जंग और फास्ट फूड खाने से लीवर खराब होने का डर होता है। ज्यादा नमक व कोलेस्ट्रॉल वाला भोजन करने से हार्ट अटैक की संभावना अधिक बढ़ जाती है। जब मनुष्य स्वाद के चक्कर में मीठा अधिक खा लेता हैं तो अग्न्याशय पर बुरा असर होता है। यदि अंधेरे में मोबाइल या कंप्यूटर की स्क्रीन की लाइट में काम करता हैं तो आंखों पर विपरीत परिणाम होता है। और यदि सदैव नकारात्मक चिंतन करता हैं तो मस्तिष्क पर बुरा असर होता है। अतः वह सभी कार्य करने से बचें जिससे शरीर पर कुछ विपरीत परिणाम हो और शरीर अस्वस्थ हो।
         साधारणतः रात्रि का समय शरीर के लिए महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस समय शरीर विष-हरण की प्रक्रिया से गुज़रता है। अर्थात् शरीर का प्रत्येक अंग मनुष्य की निंद्रा अवस्था के दौरान अपना कार्य करते हैं और उनके कार्य करने की अवधि निश्चित होती है। रात्रि दस बजे तक मनुष्य को सो जाना चाहिए। क्योंकि रात्रि ग्यारह से तीन के दौरान शरीर में रक्त संचार का अधिक भाग लीवर की ओर केंद्रित होता है और लीवर शरीर द्वारा दिनभर में एकत्रित विषाक्त पदार्थों को निष्क्रिय कर खत्म करता है। मनुष्य जितनी देर से सोता हैं शरीर को विष मुक्त करने का समय उतना ही कम होता जाता है और यदि मनुष्य रात्रि तीन बजे के बाद सोता हैं तो शरीर को विष मुक्त होने के लिए कोई समय ही नहीं बचता और यदि इसी तरह अनियमितता से सोना जारी रखते हैं तो समय के साथ यह विषाक्त पदार्थ मनुष्य के शरीर में जमा होने लगते हैं। प्रातः तीन से पांच के बीच रक्त संचार का केंद्र मनुष्य के फेफड़ों में होता है। इस समय मनुष्य को ताज़ी हवा में सांस लेना चाहिए और व्यायाम करना चाहिए। जिससे शरीर को अच्छी ऊर्जा व ताज़गी प्राप्त होती है। प्रातः पांच से सात के बीच रक्त संचार का केंद्र मनुष्य की बड़ी आत की ओर होता है। यह शौच के लिए उत्तम समय है। सुबह सात से नौ के बीच रक्त संचार का केंद्र मनुष्य का पेट या आमाशय पर होता है। यह समय नाश्ता करने के लिए उत्तम होता है। नाश्ता दिन का सबसे ज़रूरी आहर है। ध्यान रहे इसमें सारे आवश्यक पोषक तत्व सम्मिलित हो। सुबह का नाश्ता न करना भविष्य में कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का कारण बनता है। 
         सुबह के नाश्ते व रात के खाने में पूरे बारह घंटे का अंतर होना चाहिए। और मनुष्य को दिन में चार बार चार घंटे के अंतराल में पौष्टिक आहार भोजन व नाश्ते के रूप में खाना चाहिए। रात का खाना सोने के दो घंटे पहले खाना चाहिए अर्थात यदि रात्रि दस बजे सोना है तो आठ बजे के पहले रात्रि भोजन कर लेना चाहिए। अतः इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए एक निश्चित दिनचर्या तय कर नियमित व्यायाम कर पौष्टिक आहर लेकर मनुष्य अपने शरीर को स्वस्थ व निरोगी रख सकता है। इस बात की प्रेरणा मनुष्य को हर किसी को देनी चाहिए क्योंकि कुछ व्यक्तियों का यह मानना होता है इन सब बातों से क्या होता है? हम कुछ नहीं करते हैं फिर भी तो स्वस्थ है? वह इसी विचारधारा के कारण वे अपने शरीर व अपने स्वास्थ की ओर ध्यान नहीं देते व अनेक रोगों को आमंत्रण देते हैं। एक निश्चित आयु पार कर लेने के बाद शारीरिक जांच नियमित रूप से करवाते रहना चाहिए। स्वास्थ्य संबंधी प्रत्येक बातों को गंभीरतापूर्वक समझकर अपनी व्यस्त दिनचर्या में सम्मिलित करने का प्रयत्न अवश्य करना चाहिए क्योंकि प्रत्येक मनुष्य को अपने स्वास्थ्य का ध्यान स्वयं ही रखना होता है। 

हमेशा स्वस्थ दिनचर्या अपनाइए और सदैव स्वस्थ व निरोगी रहिए क्योंकि-

"स्वस्थ शरीर मैं ही ईश्वर का वास होता है।"