टेक्नोलॉजी और बचपन
-सौ भक्ति सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया, साऊथ कैरोलिना, यू. एस. ए.
टेक्नोलॉजी का जिस प्रकार विकास और विस्तार हो रहा है उसका सीधा-सीधा असर मनुष्य के दैनिक कार्यों पर भी पड़ रहा है। हर दिन कोई नई टेक्नोलॉजी मार्केट में आती है नए लैपटॉप, नए मोबाइल आने वाले दस दिनों में पुराने हो जाते हैं। आप यह सोच रहे होंगे कि टेक्नोलॉजी और बचपन का क्या संबंध है? टेक्नोलॉजी का बचपन से संबंध भी ठीक उसी तरह है जैसे बिना वाईफाई या मोबाइल डाटा का मोबाइल फोन। अर्थात् बिना लैपटॉप, मोबाइल की स्क्रीन देखे बिना आजकल के बच्चों का दिन अधूरा रह जाना। हर समय या कोई भी काम करते वक्त मोबाइल फोन या लैपटॉप बेहद जरूरी है। स्कूल या कॉलेज में जाने वाले बच्चों के साथ-साथ उन नन्हें बच्चों पर भी इसका प्रभाव देखने को मिलता है जो अभी एक से बोलना भी नहीं सीख पाए हैं। टेक्नोलॉजी ने अपना जाल कुछ इस तरह फैला रखा है मानो यदि बच्चा रोए या मां को परेशान करे अथवा खाना ना खाए या कोई ऐसा काम करे जिससे बड़ों को अपने काम करने में अड़चन हो तो बच्चों को मोबाइल, लैपटॉप या टीवी पर बिजी कर दिया जाता है। बचपन से ही बच्चों को मोबाइल, वीडियो गेम, लैपटॉप, टीवी देखने की लत-सी लग जाती है और उनकी दुनिया स्कूल और घर के अंदर तक ही सिमट कर रह जाती है। जिस वजह से बच्चे आउटडोर गेम्स में रुचि ना लेकर घर में बैठकर मोबाइल, लैपटॉप या वीडियो गेम्स ही खेलते रहते हैं। जिससे मानसिक व शारीरिक विकास ठीक से नहीं हो पाता है।
दोस्तों, ज़रा याद कीजिए हमारे बचपन में हम जो भी काम करते थे खुद के दिमाग से सोच समझकर करते थे। परंतु अब सारी ही चीज़ें मोबाइल या कुछ एप्लीकेशंस के माध्यम से बच्चों को परोस दी जाती हैं। पहले स्कूल का होमवर्क करने के लिए दिमाग का इस्तेमाल होता था लेकिन अब इंटरनेट का उपयोग होता है। जिस वजह से इंसान की सोच का दायरा दिन-प्रति-दिन घटता जा रहा है तथा मोबाइल की स्क्रीन बड़ी होती जा रही है और खेल के मैदानों का आकार घटकर मोबाइल स्क्रीन जितना होता जा रहा है। आजकल के बच्चों के सोशल मीडिया के माध्यम से देश-विदेशों में कई दोस्त होते हैं लेकिन कई बार वह अपने परिवार के परिजनों को ही नहीं पहचानते। आजकल तो मोबाइल का जमाना है या टेक्नोलॉजी का जमाना है कहकर शायद कुछ मां-बाप अपने बच्चों को बचपन से ही इस टेक्नोलॉजी के अधीन कर देते हैं। टेक्नोलॉजी के क्या फायदे हैं व क्या नुकसान हैं यह जाने बिना बच्चे धड़ल्ले से इसका उपयोग करते हैं। आजकल बच्चों को कलम पकड़कर कॉपी में लिखना बाद में आता है इससे पहले टच स्क्रीन मोबाइल पर अपनी उंगलियां बखूबी चलाना खुद ही सीख लेते हैं।
टेक्नॉलॉजी के फ़ायदे बेशक हर कोई जानता है और इसका उपयोग भी हर कोई करता है। पर बचपन में हर वक्त टेक्नोलॉजी को परोस देना गलत है। जिस कारण बच्चों के विकास पर सीधा असर पड़ता है। छोटे-छोटे बच्चे अपनी बात मनवाने के लिए चिड़चिड़े हो जाते हैं। मोबाइल में वायलेंट गेम्स खेलकर धीरे-धीरे बच्चे भी वायलेंट होने लगते हैं। बचपन मानो गुम-सा होने लगता है। अधिकतर समय स्क्रीन के सामने रहने के कारण बचपन से ही मोटे-मोटे चश्मे लग जाते हैं। जो खेल हम हमारे बचपन में खेला करते थे वही सारे खेल आजकल के बच्चे लैपटॉप, मोबाइल और वीडियो गेम में खेलते हैं।
इसमें गलती किसकी है दोस्तों? शायद, हमारी! हम बच्चों का नई टेक्नोलॉजी से तो परिचय करवाते तो हैं ही और नए वीडियो गेम भी लाकर देते हैं पर क्या कभी हमने बच्चों को हमारे बचपन में खेले हुए खेलों के बारे में बताया है? ज़रा याद कीजिए आखिरी बार आप अपने बच्चों के साथ कब खेले हैं? इस बार की गर्मी की छुट्टियों में अपने बच्चों के साथ घरों से बाहर निकलिए और अपने बचपन में खेले हुए खेल जैसे गिल्ली-डंडा, डब्बा-डाउन, लंगडी, पकड़म-पकड़ाई, छुपन-छुपाई, कंचे आदि इनसे परिचय कराइए फिर देखिए बच्चों को भी खूब मज़ा आएगा। टेक्नोलॉजी के द्वारा प्राप्त जानकारी से उनका मानसिक विकास तो हो रहा है परंतु शारीरिक विकास के लिए आउटडोर गेम खेलना भी आवश्यक है। तकनीकी विस्तार वैसे तो बेहद ज़रूरी है लेकिन क्या अपने स्वास्थ्य, भविष्य और चेतना को दांव पर रखकर? ज़रूरत से ज्यादा किसी भी वस्तु का उपयोग करना सभी दृष्टि से हानिकारक होता है। टेक्नोलॉजी का उपयोग अवश्य कीजिए अपने बच्चों को भी अवश्य सिखाइए परंतु इसका उचित उपयोग करना लाभकारी होगा। दोस्तों, टेक्नोलॉजी के चलते बच्चों का बचपन कहीं खो मत जाने दीजिए क्योंकि बचपन कभी लौटकर नहीं आता।
किसी ने खूब कहा है-
एक बचपन का जमाना था,
जिस में खुशियों का खजाना था।
चाहत चांद को पाने की थी,
पर दिल तितली का दिवाना था।
खबर नहीं थी कुछ सुबह की
ना शाम का ठिकाना था।
थककर आना स्कूल से,
पर खेलने भी जाना था।
मां की कहानी थी,
परियों का फसाना था।
बारिश में कागज की नाव थी,
हर मौसम सुहाना था।
रोने की वजह ना थी,
ना हंसने का बहाना था।
क्यों हो गए हम इतने बड़े,
इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था।

That's true ...
ReplyDeleteWell said....
Shaishav Bhatnagar
Good one , logically word using for the topic.
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