सूरत भली या सीरत
-सौ.
भक्ति
सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया,
साऊथ
कैरोलिना,
यू.
एस.
ए.
सुंदरता,
खूबसूरती
या फिर सौंदर्य किसे आकर्षित
नहीं करता। यदि सुंदरता पर
गौर किया जाए तो वह दो प्रकार
की होती है,
एक
आंतरिक सुंदरता और दूसरा बाहरी
सुंदरता। बाहरी सुंदरता की
तुलना में आंतरिक सुंदरता
अधिक महत्वपूर्ण है। आंतरिक
सुंदरता किसी व्यक्ति का
व्यक्तित्व,
उसके
विचार,
उसके
आचरण को दर्शाती है और बाहरी
सुंदरता का अर्थ है मात्र
व्यक्ति का रूप।
वर्तमान
समय में सुंदरता के सारे अर्थ
ही बदल गए हैं। लोग सुंदर दिखने
के लिए न जाने क्या-क्या
तरीके अपनाते हैं और पैसे को
पानी की तरह बहा देते हैं। कई
बार तो सुंदरता प्राप्त करने
के लिए लोगों को पीड़ा भी सहन
करनी पड़ती है। फिर भी बाहरी
सुंदरता व दिखावे की ओर कुछ
लोग हमेशा भागते नज़र आते हैं।
व्यक्ति यह भूल जाता है कि
उसकी असली सुंदरता व पहचान
उसके रूप में नहीं उसके अच्छे
व्यवहार,
अच्छे
कर्म और अच्छे गुणों से है।
बाहरी सुंदरता नकली व एक दिखावा
हो सकती है लेकिन आंतरिक सुंदरता
मनुष्य का अपना गुण होता है।
व्यक्ति के रूप को कई प्रकार
से निखारा जा सकता है,
उदाहरण
-
मेकअप,
अच्छे
ड्रेस या यहां तक की कॉस्मेटिक
सर्जरी द्वारा बाहरी सुंदरता
निखर सकती है। कुछ लोग ऐसा
सिर्फ इसलिए करते हैं क्योंकि
उन्हें यह लगता है कि बाहरी
सुंदरता ही सब कुछ है। व्यक्ति
अपने भीतर की सुंदरता को भूल
जाता है। यदि कोई व्यक्ति
कितना ही आकर्षक दिखता हो
किंतु उसके विचार और आचरण
अच्छे नहीं हों तो इस प्रकार
की सुंदरता का क्या अर्थ है?
बाहरी
सुंदरता तो उम्र के साथ ढल
जाती है मगर आंतरिक सुंदरता
स्थाई होती है। व्यक्ति की
आंतरिक सुंदरता कभी नष्ट नहीं
होती चाहे वह दुनिया में ही
क्यों ना हो। तब भी उसके विचार,
व्यवहार
व गुण अर्थात् आंतरिक सुंदरता
के बल पर वह लोगों के हृदय में
सदैव जीवित रहता है। यही बात
यह सीख देती है कि व्यक्ति के
जीवन में आंतरिक सुंदरता का
कितना महत्वपूर्ण योगदान है।
तन से कहीं ज्यादा मन की सुंदरता
जरूरी होती है क्योंकि मनुष्य
का चित्त और मन जिस प्रकार
विचार करता है वह मनुष्य के
व्यवहार में साफ़ नज़र आता
है। व्यक्ति की अच्छी सोच ही
उसका व्यवहार भी अच्छा बनाती
है। इसी बात को ध्यान में रखते
हुए किसी भी व्यक्ति की तन की
नहीं बल्कि मन की सुंदरता
देखना चाहिए। बाहरी सुंदरता
प्रकृति की देन होती है। मगर
आंतरिक सुंदरता मनुष्य के
संस्कारों से ही उसमें उत्पन्न
होती है। घर-परिवार
से लेकर स्कूल-कॉलेज
में जो संस्कार व्यक्ति को
मिलते हैं उसी से उसके गुणों
का विकास होता है। इन्हीं
गुणों से व्यक्ति के व्यक्तित्व
में चार चाँद लग जाते हैं।
अर्थात अपनी आंतरिक सुंदरता
को बढ़ाना व्यक्ति के स्वयं
के हाथों में ही होता है। आंतरिक
गुणों के विकास से मनुष्य की
ख्याति जन्म जन्मांतर तक लोगों
के बीच अमिट रहती है। यदि कोई
व्यक्ति विशेष रूप-वान
ना भी हो तो यह महत्वपूर्ण
नहीं है। उसके संस्कार,
विचार,
व्यक्तित्व
व गुण ऐसे होने चाहिए कि वह
अपने मन की सुंदरता से सभी का
चहेता बन सके। तथा इसी प्रकार
के गुण-वान
व्यक्ति का सरल स्वभाव व उसकी
सादगी उसकी कमज़ोरी नहीं होती
है यह उसकी मन की सुंदरता को
और निखारती है।
मत
कर किसी की सूरत से प्यार,
वह
तो आज ना कल बदल जाएगा|
करके
देख किसी की सीरत पर एतबार,
तेरा
हर पल संवर जाएगा|
एक
सुंदर मन हजारों सुंदर चेहरों
से बेहतर होता है|





