आज का युवा
- सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर
भारत, एक युवा प्रधान देश। जहां लगभग 35% आबादी युवाओं की है। वैसे तो भारत देश में नेशनल यूथ पॉलिसी द्वारा युवा वर्ग की आयु 15 से 29 वर्ष परिभाषित की गई है, पर यूं देखा जाए तो 15 से 22 वर्ष की आयु में ही युवा अपने कैरियर, अपने दोस्त, अच्छी-बुरी संगत को परखने की क्षमता रखता है। यही आयु है जो उसे जीवन में ऊंचाइयों को छूने का हौसला देती है या कई कारणों से उसे उसके पतन की ओर ले जाती है। बच्चे की परवरिश और संस्कार कितने ही अच्छे क्यों ना हो उसकी प्रगति या पतन का मुख्य कारण उसके आसपास के लोग तथा उसकी मित्रता पर निर्भर करता है। खैर, विषय- 'आज का युवा' है।
भारत देश में आजकल यह देखा जा रहा है कि युवा पाश्चात्य संस्कृति की ओर अधिक आकर्षित हो रहे हैं। पाश्चात्य संस्कृति का फैशनेबल पहनावा, बोलचाल, देर रात तक पार्टियां करना, भारतीय संस्कृति से जुड़े त्योहारों को पिछड़ा हुआ समझ पाश्चात्य संस्कृति के सारे त्योहारों को सेलिब्रेट कर के खुद को अधिक शिक्षित समझना - यह आजकल के युवाओं का ट्रेंड हो गया है। क्या लड़के और क्या लड़कियां सभी एक समान इस पाश्चात्य संस्कृति को अपनाने की होड़ में लगे हैं। फैशन और ट्रेंड के नाम पर आजकल के युवा न जाने क्या-क्या करते हैं। आज भी कुछ युवा जिन्हें बुरे और भले की परख तो है पर फिर भी दिखावे के लिए और अपने दोस्तों में अपनी छवि बढ़ाने के लिए कई बार कई गलत काम कर जाते हैं। लोगों के बीच अपनी झूठी शान दिखाने में वह अपना गौरव समझने लगते हैं और दिखावे में आकर अपना भला-बुरा समझने की क्षमता खो बैठते हैं। कई बार तो वे अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए अपराध करने से तक नहीं कतराते।
पाश्चात्य संस्कृति के साथ-साथ ज़्यादातर युवा वर्ग लग्ज़री की ओर आकर्षित होता चला जा रहा है। आजकल के युवाओं को ऐसे सारे गैजेट्स चाहिए होते हैं जिनकी उन्हें कभी आवश्यकता भी नहीं पड़ती किंतु दिखावे के लिए या उनके किसी मित्र के पास वह गैजेट है इस लिए उन्हें वह चाहिए होता है। वैसे तो मोबाइल, लैपटॉप, घड़ी इत्यादि एक उम्र के बाद आज की ज़रूरत बन चुके हैं। लेकिन कई बार अधिकतर स्कूल जाने वाले बच्चे भी बिना आवश्यकता सिर्फ दिखावे के लिए सबसे लेटेस्ट और महंगे गैजेट्स खरीदने की होड़ में अपने अभिभावकों से ज़िद करते हैं और ज़रूरत पड़ने पर झूठ का सहारा भी लेने लगते हैं। उन्हें वह वस्तु ना मिलने पर उनके मित्र उन्हें क्या कहेंगे?? कॉलेज में उनकी क्या इज्ज़त रह जाएगी?? यह सोच कर वे अनावश्यक वस्तुएं हासिल करने के लिए दिशाहीन होने लगते हैं। हो ना हो यह दिखावा भी पाश्चात्य संस्कृति का ही एक उदाहरण हो सकता है। यदि दिखावे के चलते किसी युवा को लग्ज़री आसानी से प्राप्त नहीं हो पाती और वह अपने दोस्तों के स्टेटस को मैच नहीं कर पाता तो धीरे-धीरेे खुद को तनावग्रस्त महसूस करने लगता है। आजकल तनाव एक बीमारी की तरह युवा पीढ़ी में विकसित हो रहा है। यह तनाव इंसान में विश्वास और आत्मविश्वास दोनों का ही आभाव पैदा करने लगता है। खुद की तुलना किसी ज्यादा रईस व्यक्ति से कर उसी की तरह हर महंगी वस्तु पाने की होड़ और वह वस्तु ना मिलने पर तनाव भरा जीवन जो कभी-कभी युवाओं को किसी तरह की लत या अपराध तक के फैसलों पर जा पहुंचाता है। किसी भी बात का क्या परिणाम होगा यह सोचे समझे बिना कुछ युवा अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का काम करते हैं अर्थात अपने जीवन को पतन की ओर ले जाते हैं।
पाश्चात्य संस्कृति और लग्ज़री को अपनाने की होड़ में युवा अपने देश की मातृभाषा को भूल अंग्रेजी की ओर ज़्यादा आकर्षित हो रहे हैं। मातृभाषा को ओछा एवं पिछड़ा समझना, लोगों के सामने उसे बोलने पर शर्म महसूस करना और इसीलिए अंग्रेजी में बातचीत करना पाश्चात्य संस्कृति और दिखावे का ही एक रूप है। युवाओं को शैक्षणिक संस्थानों में भी अंग्रेजी पर ही ज़ोर देना सिखाया जाता है। अनिवार्य रूप से अंग्रेज़ी में ही आपस में बातें करनी होती हैं। किंतु हिंदी भाषा अर्थात अपनी मातृभाषा का भी उतना ही सम्मान करना विद्यार्थियों को सिखाना आवश्यक है। यह सत्य है कि अंग्रेज़ी एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा है और युवाओं को अपने उज्जवल भविष्य के लिए, अपनी प्रगति के लिए देश-विदेश में अपना नाम कमाने के लिए अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है। परंतु यह स्मरण रहना चाहिए कि हमारी मातृभाषा भी उतनी ही सम्माननीय है। इसके महान होने का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि कई बड़े विदेशी विश्वविद्यालयों में संस्कृत और हमारी संस्कृति एक शोध का विषय है। विदेशी भी हमारी मातृभाषा के महत्व को समझने लगे हैं तथा अपने संपूर्ण उत्थान के लिए भारतीय संस्कृति को अपना रहे हैं। एक ओर विदेशों में हमारी भाषा और संस्कृति को बेहतर समझा जा रहा है और दूसरी ओर हमारे ही देश के कुछ युवाओं को हिंदी लिखने व पढ़ने में कठिनाई होती है। यह भारतवासियों के लिए, जो एक युवा प्रधान देश है, शर्म की बात है।
युवाओं को बदलते समय के साथ चलना चाहिए यह बात भी उतनी ही सत्य है। श्रीमद् भगवत गीता में भी भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि परिवर्तन ही संसार का नियम है। यदि आज का युवा यह समझ ले कि चीजों को जीवन में उनकी आवश्यकता अनुसार सही समय पर अपनाया जाए और सदैव अपनी संस्कृति तथा मातृभाषा का भी उतना ही सम्मान करे तो वह अपनी शक्तियों तथा सोचने की क्षमताओं का पूरा उपयोग करते हुए अपना संपूर्ण विकास कर सकता है और जीवन में मनचाही ऊंचाइयां हासिल कर सकता है।
सुविचार -
ज़रूरत से ज्यादा कोई भी चीज़
विष समान होती है,
फिर चाहे वो धन हो, शक्ति हो
या महत्त्वाकांक्षाएं हों।
युवाओं को खुद पर विश्वास रखना चाहिए तथा
अपनी तुलना किसी और से नहीं करनी चाहिए -
क्योंकि हर एक व्यक्ति अपने आप में अद्वितीय है।

Super👌👌👌👍👍
ReplyDeleteThankyou 😊. Please write your name.
DeleteMayura Manake
ReplyDelete👍
DeleteVery true, and your explanation is so nice and honest. I really like this. Keep continue writing on all topics.
ReplyDeleteबिल्कुल सही ! युवाओं और उनके पालकों को यह लेख जरूर पढ़ना चाहिए। Keep it up Bhakti !
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति युवा सोच व मातृभाषा के लिए । 🌹👍🌹 ग्रेट भक्ति
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ReplyDeleteबेहतरीन सोच।ऐसे ही कहानी संग्रह या लघु उपन्यास लिख डालो, फटाफट।
ReplyDeleteखूबच छान लिहिले आहे ।आजीला पण छान वाटले ।अशेच छान लिहित रहा ।
ReplyDeleteVery nice Bhakti. Amazing article. Keep it up.
ReplyDeleteSaurabh khanwalkar
Hay
ReplyDeleteSanjay k
Hay
ReplyDeleteSanjay k
anant puranik very very right your article to day miss guide young generation they attract only i am rais iam super
ReplyDeleteWell written dear👌👍
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