Friday, 20 December 2019

शिक्षा कल और आज| Hindi


   शिक्षा - कल और आज


-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू. एस. .  

               कभी-कभी हमारे जीवन में ऐसे पल आते हैं जो हमें तथा समाज को कुछ अच्छी सीख और सोच दे जाते हैं। वैसे तो समाज में जागरूकता बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया, टेलीविजन इत्यादि अपना योगदान दे ही रहे हैं। इनमें कुछ बातें तो किसी मतलब की नहीं होती लेकिन कुछ बातें आपको कुछ ऐसे विषयों पर सोचने पर मजबूर कर देती है जिससे समाज का अथवा व्यक्ति के विकास का सीधा संबंध हो। अब आप सोच रहे होंगे कि यह सभी बातों का मेरी लिखी गई पहली पंक्ति से क्या संबंध है? तो संबंध कुछ इस प्रकार है कि टेलीविजन पर एक धारावाहिक देखते हुए उसमें शिक्षा का सभी वर्ग के विद्यार्थियों के लिए क्या महत्व है को समझाते हुए एक दृश्य दर्शाया गया था। तो दृश्य कुछ इस प्रकार था- एक गरीब परिवार की होनहार व होशियार लड़की को अच्छे विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करनी थी। चूंकि वह गरीब परिवार से थी इसलिए उसे उस विद्यालय में दाखिला नहीं मिला क्योंकि उस विद्यालय में सिर्फ सक्षम और समृद्ध लोगों के बच्चे ही शिक्षा प्राप्त कर सकते थे यह उस विद्यालय का नियम था। यह दृश्य देख तथा इस बात की गंभीरता को समझते हुए मन में यूं ही एक विचार आया कि कल की शिक्षा और आज की शिक्षा में कितना फर्क आ गया है।
              जब हम अपने बचपन की ओर निगाह डालते हैं तो याद आता है कि वह दिन भी कितने अलग थे। उस वक्त शिक्षा केवल शिक्षा होती थी। यह बड़े लोगों का स्कूल, यह छोटे लोगों का स्कूल, यह एयर कंडीशनर क्लासरूम, इस स्कूल में बड़े लोग ही जा सकते हैं, इसमें पैसे वालों की या मोटी फीस देने वालों के बच्चे ही पढ़ सकते हैं; ऐसा कुछ भी नहीं होता था। उस वक्त शिक्षा, शिक्षा होती थी। विद्यालय सरस्वती का मंदिर होते थे। सभी जगह मां सरस्वती की पूजा होती थी। सिर्फ धन ही महत्वपूर्ण है, यह नहीं सिखाया जाता था। जीवन में हमें यह सिखाया जाता था कि सही ज्ञान ही असली धन है। ज्ञान सबसे महत्वपूर्ण है। उस वक्त सभी विद्यार्थी ज्ञान की लालसा में विद्यालय जाया करते थे और इस भाव से जाते थे कि विद्यालय से पढ़-लिख कर निकलेगें तो समाज की सेवा करेंगे। समाज के लिए कुछ कर दिखाएंगे। हमारे देश के महान वैज्ञानिक एवं पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम जी ने बहुत ही खूब कहा है, "इस देश के सबसे अच्छे दिमाग क्लास के लास्ट बेंच पर भी मिल सकते हैं।" सभी की यूनिफार्म एक जैसी होती थी, कोई भेदभाव नहीं, कोई ऊंच-नीच नहीं, कोई वर्ग भेद नहीं, सारे बच्चे एक साथ खेलते थे। आप पता ही नहीं लगा सकते थे कि यह अमीर परिवार से है कि यह परिवार से गरीब है। अब सोच कर देखिए ज़रा क्या वाकई इतना फर्क आ गया है?
  यदि सोचा जाए तो शायद, हां। क्योंकि ठीक इसका विपरीत आज हो रहा है। कुछ लोगों के लिए पैसों की अहमियत इतनी बढ़ गई है कि विद्यार्थी की काबिलियत से ज्यादा विद्यार्थी के पिता का क्या व्यवसाय है, उसके पिता के पास कितना धन है, वह कहां रहता है, कहां से आता है यह देखा जाता है। बस कुछ धन के लोभीयों द्वारा शिक्षा और विद्यार्थियों में भेदभाव पैदा कर दिया गया है। जिसका विपरीत परिणाम अन्य अच्छी शैक्षणिक संस्थानों व अन्य विद्यालयों पर भी पड़ रहा है। कहते हैं ना, 'मिष्ठान के डिब्बे में यदि एक भी मिठाई खराब हो तो पूरे मिष्ठान के डिब्बे को ही खराब मान लिया जाता है।परंतु यह भी सत्य है कि सभी शिक्षा संस्थान अथवा विद्यालय ऐसे नहीं है। कई संस्थानों में आज भी सभी विद्यार्थियों को समान रख अच्छी-से-अच्छी शिक्षा दी जाती हैं, बिना किसी भेदभाव के साथ मिलजुल कर विद्यार्थियों को साथ रहना व खेलना सिखाया जाता है, सभी विद्यार्थियों को अच्छा आचरण सिखाया जाता है। ऐसे ही अच्छे संस्थानों से कई विद्यार्थी देश के बड़े डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट व उच्च पदों पर पहुंच हमारे देश का नाम रोशन कर रहे हैं। विद्यार्थियों में भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि बच्चे भगवान का रूप होते हैं तथा सभी बच्चे एक समान होते हैं। जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सकें, अच्छे इंसान बन सकें, अच्छा चरित्र गठन कर सकें और अपने समाज तथा अपने देश की उन्नति में अपना योगदान दे सकें, वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है। आपने यह तो सुना ही होगा 'किसी की धन दौलत से कोई बेहतर नहीं हो जाता, कोई गरीब है तो वह कमतर नहीं हो जाता।'

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Thursday, 14 November 2019

जीवन में परिवार का महत्व | Hindi


जीवन में परिवार का महत्व


-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू.एस..

'परिवार सिर्फ साथ रहने से नहीं बल्कि हमेशा साथ जीने से बनता है।'
परिवार वह जड़ है जो वृक्ष के शाखा रुपी सभी सदस्यों को आपसी सहयोग व समन्वय से अपना जीवन प्रेम, स्नेह एवं भाईचारे पूर्वक निर्वाह करने की प्रेरणा देता है। संस्कार, मर्यादा, प्रेम, सम्मान, समर्पण, आदर, अनुशासन आदि किसी भी सुखी-संपन्न एवं खुशहाल परिवार के गुण होते हैं। परिवार में जन्म लेने के बाद व्यक्ति की पहचान होती है और परिवार से ही अच्छे-बुरे लक्षण सीखता है। परिवार सभी लोगों को जोड़े रखता है तथा सुख-दुःख में एक-दूसरे का साथ देना सिखाता है। एक अच्छा परिवार बच्चे के चरित्र निर्माण से लेकर व्यक्ति की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। परिवार एक इंसान को बड़ा बनाता है और मानव जाति में पूर्ण रूप से विकसित करता है। यह सुरक्षा और प्यार का वातावरण देता है और व्यक्ति को सामाजिक और बौद्धिक बनाता है। कई वैज्ञानिक शोधों में भी पाया गया है कि परिवार में रहने वाला व्यक्ति अकेले रहने वाले व्यक्ति से ज्यादा खुश रहता है।
संयुक्त परिवार में वृद्धों का संबल प्रदान होता रहा है और उनके अनुभव व ज्ञान से युवा व बाल पीढ़ी लाभान्वित होती रही है। लेकिन बदलते समय में तीव्र औद्योगीकरण, शहरीकरण व आधुनिकीकरण के कारण संयुक्त परिवार की परंपरा डगमगाने लगी है। वस्तुत: संयुक्त परिवारों का बिखराव होने लगा है। एकाकी परिवारों की जीवनशैली ने दादा-दादी और नाना-नानी की गोद में खेलने व लोरी सुनने वाले बच्चों का बचपन छीन कर उन्हें मोबाइल की दुनिया का आदि बना दिया है। व्यक्तिगत आकांक्षा, नौकरी या व्यवसाय में उन्नति, आपसी मन मुटाव, सामंजस्य की कमी, इत्यादि के कारण संयुक्त परिवार की संस्कृति धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। गांवों में रोज़गार का अभाव होने के कारण एक बड़ी आबादी का झुकाव शहरों की ओर बढ़ता जा रहा है। शहरों में भीड़भाड़ रहने के कारण कई बच्चे अपने माता-पिता को चाह कर भी पास नहीं रख पाते हैं। यदि कुछ अपने साथ उन्हें रखना भी चाहे तो वे शहरी जीवन के अनुसार खुद को ढाल नहीं पाते।
         इसके अलावा पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव बढ़ने के कारण आधुनिक पीढ़ी का एक बड़े वर्ग का अपने बुजुर्गों व अभिभावकों के प्रति आदर कम होने लगा है। वृद्धावस्था में अधिकतर बीमार रहने वाले माता-पिता अब उन्हें बोझ लगने लगे हैं। वे अपने संस्कारों और मूल्यों से कट कर एकाकी जीवन को ही अपनी असली खुशी व आदर्श मानने लगते हैं। इसके अलावा बुजुर्ग वर्ग और आधुनिक पीढ़ी के विचार मेल नहीं खाते है क्योंकि बुजुर्ग पुराने जमाने के अनुसार व सब से घुलमिल कर जीना पसंद करते हैं तो युवा वर्ग आज की स्टाइलिश लाइफ जीना चाहते हैं। इसी वजह से दोनों के बीच संतुलन की कमी दिखती है, जो परिवार के टूटने का कारण बनती है। यदि संयुक्त परिवारों को समय रहते नहीं बचाया गया तो आने वाली पीढ़ी ज्ञान संपन्न होने के बाद भी दिशाहीन होकर अपने जीवन को सार्थक नहीं बना पाएगी। ज़रा सोचिए, ऐसा कौन सा घर परिवार है जिसमें मतभेद नहीं होते? लेकिन यह मतभेद मनभेद कभी ना बने इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है। बुज़ुर्ग वर्ग को भी चाहिए कि वह नए ज़माने के साथ चलते हुए नई सोच को अपनाएं जिससे उनकी और नई पीढ़ी के बीच का फासला कम हो सके।
परिवार प्यार का दूसरा नाम है। अपने परिवार को समय दीजिए इससे प्रेम और विश्वास का रिश्ता मजबूत बनता है। याद रखिए कहीं जिंदगी की भाग दौड़ में परिवार पीछे न छूट जाए। जहां तक हो सके कोशिश करें कि परिवार के सभी सदस्य साथ में मिलकर रहे। एक ही छत के नीचे बुजुर्गों का स्नेह और आशीर्वाद के साथ बच्चों की हंसी-ठिठोली भी गूंजें। अपनी भाग-दौड़ भरी दिनचर्या से रोज़ कम-से-कम एक घंटा अपने परिवार के लिए अवश्य निकालें। जिसे आजकल 'फैमिली टाइम' भी कहा जाता है। एक वक्त निश्चित कर परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठकर भोजन करें तथा दिन भर के अपने अनुभवों को एक दूसरे के साथ साझा करें। आपकी बातें सुन आपके बच्चे भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। उनमें कुछ संस्कार व आदतें आपको तथा घर के वृद्ध सदस्यों को देख अपने आप आने लगेंगी। बच्चों में अपने से बड़ों का तथा अपने माता-पिता का आदर करना जैसी सीख उन्हें आप से ही तो मिलेगी। याद रखिए जहां आज आप हैं वहां कल आपके बच्चे होंगे। आखिरकार बच्चे वही सीखते हैं जो वे अपने बड़ों को करता देखते हैं। किसी ने सच ही कहा है -
परिवार से बड़ा कोई धन नहीं,
पिता से बड़ा कोई सलाहकार नहीं, मां की छाव से बड़ी कोई दुनिया नहीं,
भाई से अच्छा कोई भागीदार नहीं, बहन से बड़ा कोई शुभचिंतक नहीं,
इसलिए "परिवार" से अच्छा कोई जीवन नहीं।

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Friday, 25 October 2019

दीपों की अवली : दीपावली | Hindi


दीपों की अवली : दीपावली


-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू.एस..



दीपावली, भारत में हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार है। दीपों का खास पर्व होने के कारण इसे दीपावली या दिवाली नाम दिया गया। दीपावली का अर्थ होता है, दीपों की अवली यानि पंक्ति। इस प्रकार दीपों की पंक्तियों से सुसज्ज‍ित इस त्योहार को दीपावली कहा जाता है। कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह महापर्व, अंधेरी रात को असंख्य दीपों की रौशनी से प्रकाशमय कर देता है। दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियां हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार कार्तिक अमावस्या को भगवान श्री रामचंद्र जी चौदह वर्ष का वनवास काटकर तथा असुरी वृत्तियों व रावण आदि राक्षसों का संहार करके अयोध्या लौटे थे। तब अयोध्यावासियों ने राम के राज्यारोहण पर दीपमालाएं जला कर महोत्सव मनाया था। इस दिन घरों को तथा बाजारों को रोशनी से सजाया जाता है। बच्चे हो या बूढ़े हर उम्र के लोग इस त्यौहार को बड़ी ही उत्साह के साथ धूमधाम से मनाते हैं। विभिन्न प्रकार के व्यंजन व मिष्ठान हर घर में बनाए जाते हैं तथा इन्हीं पकवानों के साथ व दीप जला कर देवी लक्ष्मी का स्वागत किया जाता है।
दिवाली पांच दिवसीय उत्सव है तथा प्रत्येक दिवस का पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अपना महत्व है। पहले दिन धनतेरस के रूप में जाना जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। दूसरा दिन नरकचतुर्दशी या छोटी दिवाली के रूप में जाना जाता है। जिसे भगवान कृष्ण की पूजा करके मनाया जाता है क्योंकि उन्होंने इस दिन राक्षस राज नारकसुर का वध किया था। तीसरे दिन मुख्य दिवाली दिवस के रूप में जाना जाता है जिसे शाम को रिश्तेदारों, दोस्तों, पड़ोसियों के साथ मिलकर देवी लक्ष्मी व गणेश जी की पूजा करके मनाया जाता है। चारों ओर फूलों की रंगोली बनाई जाती है और दीये जलाए जाते हैं, एक दूसरे को मिठाई और पकवान दिए जाते हैं और धूमधाम से प्रकाश का पर्व मनाया जाता है। । चौथे दिन भगवान कृष्ण व माता समान गाय की पूजा की जाती है जिसे गोवर्धन पूजा या गोवर्धन पाडवा के रूप में जाना जाता है। पांचवें दिन यम द्वितिया या भाई दूज के रूप में जाना जाता है। इस दिन बहन भाई की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती है तथा यह त्योहार भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है।
       दिवाली भारत का एक सर्वधर्म एवं सांस्कृतिक पर्व है। इस त्यौहार को सभी धर्म व जाति के लोग मिल जुलकर भाई चारे के साथ मनाते हैं। दीपावली के दौरान लोग अपने घर और कार्य स्थल की साफ-सफाई करते हैं। दीपावली जहाँ रौनक और ज्ञान का प्रतीक है वही स्वच्छता का प्रतीक भी है जिसके कारण सबके मन में नई ऊर्जा और नया उत्साह जन्म लेता है। दिवाली के इस विशेष त्योहार पर कुछ ऐसे कार्य हैं जिससे हम ना सिर्फ अपने लिए मंगलकारी बल्कि दूसरों के लिए भी इस दिन को खास बना सकते हैं और दिवाली के वास्तविक अर्थ को सच्चे रुप से सार्थक कर सकते हैं। जब भी दिवाली की खरीददारी करने जाएं तो इस बात को ध्यान रखे कि कुछ वस्तुएं हम गरीब और मेहनती लोगों से खरीदें क्योंकि हमारे तरह इन्हें भी वर्ष भर इस त्योहार का इंतजार होता है। यह ना सिर्फ हमारे देश के छोटे व्यापारियों और कुम्हारों को आर्थिक रुप से सुदृढ़ बनाकर देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने का कार्य करता है बल्कि दिवाली के पारंपरिक रुप को भी बनाये रखता है। एक और महत्वपूर्ण बात यदि हम चाहे तो अपनी आकांक्षाओं में कुछ कटौती करके या अपने पास से कुछ अधिक खर्च निकालकर कुछ गरीबों और जरूरतमंद लोगों को मिठाइयां और उपहार जैसी चीजें बांटकर उनके चेहरों पर खुशियां ला सकते हैं और उनके साथ-साथ अपने लिए भी इस त्योहार को और भी ज्यादा विशेष बनाते हुए, दिवाली के त्योहार का वास्तविक सुख प्राप्त कर सकते हैं। 
सब जानते हैं कि दिवाली पर पटाखों और भारी आतिशबाजी के कारण काफी ज्यादा मात्रा में प्रदूषण उत्पन्न होता है। कई बार लोग दिवाली के कई हफ्ते पहले से ही पटाखे फोड़ना शुरु कर देते हैं, जिससे पर्यावरण में प्रदूषण की मात्रा बढ़ने लगती है और दिवाली के दिन यह चरम पर पहुंच जाती है। इसका सबसे ज्यादा असर महानगरों में देखने को मिलता है, जहां दिवाली के त्योहार के बाद प्रदूषण का स्तर ज्यादा बढ़ जाता है। प्रदूषण के साथ-साथ तेज पटाखों की आवाज से छोटे बच्चों, वृद्ध व मरीजों पर भी बुरा असर होता है। पटाखों का कम से कम उपयोग करके हरित दिवाली मनाने का प्रयास करें। यह दिवाली पर हमारे द्वारा प्रकृति को दी जा सकने वाली सबसे बड़ी भेंट होगी। यदि दिवाली पर हम इन बातों को अपना ले तो इस त्योहार को और भी ज्यादा मनमोहक और समृद्ध बना सकते हैं। दिवाली के त्योहार पर हमारे यह छोटे-छोटे कार्य बड़े परिवर्तन ला सकते हैं।
आप सभी को दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं।

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Friday, 11 October 2019

प्लास्टिक और पर्यावरण | Hindi

प्लास्टिक और पर्यावरण

-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू.एस..


जिस प्लास्टिक को मनुष्य अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाए हुए है, वही अब मानव जाति के लिये धीमा ज़हर बन चुका है। यह समूची दुनिया के लिये गंभीर चुनौती बन चुका है। वैज्ञानिक तो बरसों से इसके दुष्परिणामों के बारे में सूचित कर रहे हैं। अपने शोधों, अध्ययनों के माध्यम से उन्होंने समय-समय पर इससे होने वाले खतरों को साबित भी किया है और जनता को उससे आगाह भी किया है। प्लास्टिक युक्त कचरे से सिर्फ महानगर ही नहीं बल्कि छोटे शहर और गांव भी अछूते नहीं हैं। नतीजतन गन्दगी और प्लास्टिक युक्त कूड़े-कचरे पर अक्सर मक्खी-मच्छर और कीड़े-मकोड़े पनपते हैं जो अनेकों गंभीर बीमारियों का कारण बनते हैं। सबसे अधिक दुखदायी बात तो यह है कि मवेशी द्वारा अनजाने में प्लास्टिक खा लेने से उन्हें अनेक प्रकार की बीमारियाँ होने लगती है व कई बार उनकी जान पर भी बन आती है।
मनुष्य की ही लापरवाही का नतीजा है कि नदी और समुद्र में प्लास्टिक का कचरा चिंताजनक तेज़ी से बढ़ रहा है और पर्यावरण के लिए एक भयानक खतरा बनता जा रहा है। नदी और समुद्र में पहुँच रहा प्लास्टिक का कचरा मनुष्य, जल-जीवों और पशु-पक्षियों के भोजन में भी पहुँच रहा है। वैज्ञानिकों की एक शोध में यह सामने आया कि जिस पानी को प्लास्टिक की बोतलों में भरा जाता है और लोग मिनरल वाटर समझकर पीते हैं, उसमें प्रति लीटर औसतन न जाने कितने प्लास्टिक के सूक्ष्म कण मौजूद होते हैं। मनुष्य ने अपनी सुविधा के लिए प्लास्टिक का निर्माण किया अब वही उसके लिए सबसे बड़ी समस्या बनकर सामने आ रही है। प्राकृतिक रूप से प्लास्टिक ना ही मिट्टी तथा ना ही पानी में घुलने योग्य है। यही प्लास्टिक सड़कों पर पानी के निकास मार्गों में फंस जाता है जिससे ज़रा-सी बारिश से भी सड़कों पर जलभराव हो जाता है और सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। यदि मनुष्य ने समय रहते इस भयंकर समस्या का समाधान नहीं ढूंढा तो आज उपयोग में ले कर फेंका हुआ प्लास्टिक कचरा सैकड़ों-हजारों साल तक हमारी आने वाली पीढ़ियों के साथ बना रहेगा और सभी जीवों के जीवन और पर्यावरण से खिलवाड़ करता रहेगा। जिसकी भरपाई असंभव होगी। ऐसे में इसके उत्पादन और निस्तारण को लेकर गम्भीरतापूर्वक विचार किये जाने की बेहद ज़रूरत है।
प्लास्टिक के अधिक उपयोग के दुष्परिणामों को देखते हुए सर्वप्रथम इसकी रीसाइक्लिंग की मुहिम पर ज़ोर दिया गया है। प्लास्टिक उत्पादनों की रीसाइक्लिंग कर पर्यावरण की सुरक्षा की जा सकती है। प्लास्टिक के साथ-साथ पेपर, अल्युमिनियम, स्टील और अन्य धातुओं को भी रिसाइकल कर कुछ और उपयोगी वस्तुओं का निर्माण किया जा सकता है। मनुष्यों द्वारा पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाया गया है। ग्लोबल वॉर्मिंग भी मनुष्य की गलतियों का ही परिणाम है। रीसाइक्लिंग से प्राकृतिक संसाधनों के अपव्यय को रोका जा सकता है। यह प्रदूषण को काफी हद तक रोक सकता है, पर्यावरण को बचा सकता है और अधिक उपयोगी वस्तुओं को बनाने में मदद कर सकता है। इसलिए पर्यावरण की रक्षा हम सभी की ज़िम्मेदारी बनती है। समुद्र में प्लास्टिक के कचरे का स्तर बढ़ जाने से समुद्री जीव-जंतुओं को जो परेशानी होती है उससे निजात पाने के लिए देश विदेशों में यह कचरा साफ करने के लिए बड़े स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। हमारे ही देश में प्लास्टिक के कचरे को पुनः उपयोग में लाने के लिए इसे सड़क बनाने में भी उपयोग किया जा रहा है। यह एक क्रांतिकारी कदम है जिसमें कूड़े से बीने गए प्लास्टिक से सड़क बनाई जा रही है। एक  प्रोसेसिंग प्लांट में सड़क बनाने वाले मिश्रण में 10 फीसद प्लास्टिक मिलाया जाता है। इस मिश्रण से बनी सड़क की मज़बूती बढ़ जाती है। 
दोस्तों, पूरे भारत में सिंगल यूज प्लास्टिक, जैसे पॉलिथीन और प्लास्टिक की बोतलों इत्यादि का उपयोग बंद करने की मुहिम चल रही है। अब जानते हैं कि हम अपनी ओर से इस मुहिम में अपना योगदान कैसे दे सकते हैं और प्लास्टिक के कचरे को कम करने का प्रयास कर सकते हैं। हम प्लास्टिक का सबसे ज्यादा उपयोग घरेलू सामान एवं सब्जियां खरीदते वक्त करते हैं। सामान लाने के लिए हमेशा एक कपड़े की थैली अपने पास रखिए और उसका उपयोग कीजिए। घर से निकलते वक्त पीने का पानी अपने साथ रखिए ताकि प्यास लगने पर आपको बाजार से प्लास्टिक की बोतल में पानी ना खरीदना पड़े। प्लास्टिक का कचरा सिर्फ और सिर्फ कचरा पेटी में ही डालें, इससे यह पूरी तरह रीसायकल हो पाएगा। 
प्लास्टिक कचरे की रीसाइक्लिंग से इससे संबंधित प्रदूषण को व दुष्परिणामों को बहुत कम किया जा सकता है। इससे पर्यावरण स्वस्थ बनेगा और भविष्य में सभी जीव स्वस्थ जीवन व्याप्त कर सकेंगे।
स्वच्छ राष्ट्र बनाना है,
हर घर से प्लास्टिक को हटाना है।

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Friday, 4 October 2019

नवरात्रि का महत्व… | Hindi



नवरात्रि का महत्व…



-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू.एस..



भारतीय हिंदू समाज में जितने पर्व और उत्सव मनाए जाते हैं, उनमें नवरात्रि का विशिष्ट स्थान है। नवरात्रि शक्ति की उपासना का पर्व है। शक्ति ही विश्व का सृजन करती है, शक्ति ही इसका संचालन करती है, शक्ति ही दुष्टों का संहार करती है। नवरात्रि उत्सव मां की आराधना व नारी शक्ति का प्रतिनिधित्व है। वसंत और शरद ऋतुओं का आगमन जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है। यह दोनों समय मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माने जाते हैं। नवरात्रि पर्व माँ दुर्गा की अवधारणा, भक्ति और परमात्मा की शक्ति की पूजा का सबसे शुभ और अनोखा माना जाता है। नवरात्रि त्यौहार प्रति वर्ष मुख्य रूप से दो बार बनाया जाता है, हिंदी महीनों के अनुसार पहला नवरात्रि चैत्र मास में मनाया जाता है तो दूसरा नवरात्रि अश्विन मास में मनाया जाता है। शक्ति की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। नवरात्र में पारंपारिक नृत्य अर्थात् जिसे गरबा कहते हैं कर आदिशक्ति की आराधना की जाती है। आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में क्रमशः माँ दुर्गा के 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। माँ शैलपुत्री: नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री रुप की पूजा-अर्चना की जाती है। माँ शैलपुत्री को पहाड़ो की पुत्री भी कहा जाता है। माँ ब्रह्मचारिणी: नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा-अर्चना की जाती है। माँ चंद्रघंटा: नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा रूप की पूजा अर्चना की जाती है। माँ चंद्रघंटा का स्वरूप चन्द्रमा की तरह चमकता है इसलिए इनको चंद्रघंटा नाम दिया गया है। माँ कूष्माण्डा: नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा रूप की पूजा-अर्चना की जाती है। माँ स्कंदमाता: नवरात्रि के पांचवे दिन माँ स्कंदमाता रूप की पूजा अर्चना की जाती है। स्कंदमाता को भगवान कार्तिकेय की माता के रूप में भी जाना जाता है। माँ कात्यायनी: नवरात्रि के छठवें दिन माँ कात्यायनी रूप की पूजा-अर्चना की जाती है। माँ कालरात्रि: नवरात्रि के सातवें दिन को माँ कालरात्रि की पूजा-अर्चना की जाती है। माँ कालरात्रि को काल का नाश करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है। माँ महागौरी: नवरात्रि के आठवें दिन माँ महागौरी की पूजा-अर्चना की जाती है। माँ महागौरी को सफ़ेद रंग वाली देवी के रूप में भी जाना जाता है। माँ सिद्धिदात्री: नवरात्रि के नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना की जाती है।
नवरात्रि का त्यौहार वैदिक युग से ही बड़े ही हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार के शुरू होने के पीछे कुछ प्रचलित कथाएं है। एक प्रमुख कथा यह है कि एक महिषासुर नामक राक्षस ने सूर्य देव, अग्नि देव, वायु देव, स्वर्ग के देवता इंद्र देव सहित सभी देवताओं पर आक्रमण कर उनके अधिकार छीन लिए। चूँकि देवताओं ने पहले महिषासुर को अजेय होने का वरदान दिया था तो कोई भी देवता उसका सामना नहीं कर सका इसलिए सभी देवताओं ने माँ दुर्गा से स्तुति की वे महिषासुर राक्षस से युद्ध करें और उसका संहार करके उन्हें उसके प्रकोप से मुक्त करें। देवताओं की विनती मानते हुए माँ दुर्गा ने महिषासुर से लगातार नौ दिनों तक युद्ध किया और महिषासुर का वध किया। तभी से माँ दुर्गा की नौ दिनों तक पूजा-अर्चना की जाती है और नवरात्र के रूप में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। दूसरी कथा इस प्रकार है कि भगवान श्री राम ने अपने भाई लक्ष्मण एवं अपने प्रिय भक्त हनुमान एवं पूरी सेना के साथ मिलकर रावण से युद्ध करने से पहले युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए माँ दुर्गा से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनकी 9 दिनों तक पूजा-अर्चना की थी। 9 दिन पूजा करने के बाद भगवान श्री राम ने दसवें दिन रावण की सेना पर चढ़ाई की और उस युद्ध में रावण को मारा। तभी से प्रचलित है कि पहले 9 दिनों को नवरात्रि के रूप में माँ दुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती है और दसवें दिन रावण दहन होता है इसलिए इसे दशहरा के नाम से जानते हैं। नवरात्रि के प्रारंभ से लेकर दशहरा के दिन तक जगह-जगह रामलीला का मंचन होता है और दसवें दिन श्री राम एवं रावण के युद्ध का मंचन करके रावण दहन किया जाता है। इस दिन रावण के पुतले को जलाकर एवं अच्छाई की बुराई पर जीत के रूप में उत्सव मनाया जाता है।

आप सभी को नवरात्रि के पर्व और दशहरे के त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाएं।



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