शिक्षा - कल और आज
-सौ.
भक्ति
सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया,
साउथ
कैरोलिना,
यू.
एस.
ए.
कभी-कभी
हमारे जीवन में ऐसे पल आते हैं
जो हमें तथा समाज को कुछ अच्छी
सीख और सोच दे जाते हैं। वैसे
तो समाज में जागरूकता बढ़ाने
के लिए सोशल मीडिया,
टेलीविजन
इत्यादि अपना योगदान दे ही
रहे हैं। इनमें कुछ बातें तो
किसी मतलब की नहीं होती लेकिन
कुछ बातें आपको कुछ ऐसे विषयों
पर सोचने पर मजबूर कर देती है
जिससे समाज का अथवा व्यक्ति
के विकास का सीधा संबंध हो।
अब आप सोच रहे होंगे कि यह सभी
बातों का मेरी लिखी गई पहली
पंक्ति से क्या संबंध है?
तो
संबंध कुछ इस प्रकार है कि
टेलीविजन पर एक धारावाहिक
देखते हुए उसमें शिक्षा का
सभी वर्ग के विद्यार्थियों
के लिए क्या महत्व है को समझाते
हुए एक दृश्य दर्शाया गया था।
तो दृश्य कुछ इस प्रकार था-
एक
गरीब परिवार की होनहार व होशियार
लड़की को अच्छे विद्यालय में
शिक्षा प्राप्त करनी थी। चूंकि
वह गरीब परिवार से थी इसलिए
उसे उस विद्यालय में दाखिला
नहीं मिला क्योंकि उस विद्यालय
में सिर्फ सक्षम और समृद्ध
लोगों के बच्चे ही शिक्षा
प्राप्त कर सकते थे यह उस
विद्यालय का नियम था। यह दृश्य
देख तथा इस बात की गंभीरता को
समझते हुए मन में यूं ही एक
विचार आया कि कल की शिक्षा और
आज की शिक्षा में कितना फर्क
आ गया है।
जब
हम अपने बचपन की ओर निगाह डालते
हैं तो याद आता है कि वह दिन
भी कितने अलग थे। उस वक्त शिक्षा
केवल शिक्षा होती थी। यह बड़े
लोगों का स्कूल,
यह
छोटे लोगों का स्कूल,
यह
एयर कंडीशनर क्लासरूम,
इस
स्कूल में बड़े लोग ही जा सकते
हैं,
इसमें
पैसे वालों की या मोटी फीस
देने वालों के बच्चे ही पढ़
सकते हैं;
ऐसा
कुछ भी नहीं होता था। उस वक्त
शिक्षा,
शिक्षा
होती थी। विद्यालय सरस्वती
का मंदिर होते थे। सभी जगह मां
सरस्वती की पूजा होती थी।
सिर्फ धन ही महत्वपूर्ण है,
यह
नहीं सिखाया जाता था। जीवन
में हमें यह सिखाया जाता था
कि सही ज्ञान ही असली धन है।
ज्ञान सबसे महत्वपूर्ण है।
उस वक्त सभी विद्यार्थी ज्ञान
की लालसा में विद्यालय जाया
करते थे और इस भाव से जाते थे
कि विद्यालय से पढ़-लिख
कर निकलेगें तो समाज की सेवा
करेंगे। समाज के लिए कुछ कर
दिखाएंगे। हमारे देश के महान
वैज्ञानिक एवं पूर्व राष्ट्रपति
स्व.
डॉ.
ए
पी जे अब्दुल कलाम जी ने बहुत
ही खूब कहा है,
"इस
देश के सबसे अच्छे दिमाग क्लास
के लास्ट बेंच पर भी मिल सकते
हैं।"
सभी
की यूनिफार्म एक जैसी होती
थी,
कोई
भेदभाव नहीं,
कोई
ऊंच-नीच
नहीं,
कोई
वर्ग भेद नहीं,
सारे
बच्चे एक साथ खेलते थे। आप पता
ही नहीं लगा सकते थे कि यह अमीर
परिवार से है कि यह परिवार से
गरीब है। अब सोच कर देखिए ज़रा
क्या वाकई इतना फर्क आ गया है?
यदि
सोचा जाए तो शायद,
हां।
क्योंकि ठीक इसका विपरीत आज
हो रहा है। कुछ लोगों के लिए
पैसों की अहमियत इतनी बढ़ गई
है कि विद्यार्थी की काबिलियत
से ज्यादा विद्यार्थी के पिता
का क्या व्यवसाय है,
उसके
पिता के पास कितना धन है,
वह
कहां रहता है,
कहां
से आता है यह देखा जाता है। बस
कुछ धन के लोभीयों द्वारा
शिक्षा और विद्यार्थियों में
भेदभाव पैदा कर दिया गया है।
जिसका विपरीत परिणाम अन्य
अच्छी शैक्षणिक संस्थानों
व अन्य विद्यालयों पर भी पड़
रहा है। कहते हैं ना,
'मिष्ठान
के डिब्बे में यदि एक भी मिठाई
खराब हो तो पूरे मिष्ठान के
डिब्बे को ही खराब मान लिया
जाता है।' परंतु
यह भी सत्य है कि सभी शिक्षा
संस्थान अथवा विद्यालय ऐसे
नहीं है। कई संस्थानों में
आज भी सभी विद्यार्थियों को
समान रख अच्छी-से-अच्छी
शिक्षा दी जाती हैं,
बिना
किसी भेदभाव के साथ मिलजुल
कर विद्यार्थियों को साथ रहना
व खेलना सिखाया जाता है,
सभी
विद्यार्थियों को अच्छा आचरण
सिखाया जाता है। ऐसे ही अच्छे
संस्थानों से कई विद्यार्थी
देश के बड़े डॉक्टर,
इंजीनियर,
साइंटिस्ट
व उच्च पदों पर पहुंच हमारे
देश का नाम रोशन कर रहे हैं।
विद्यार्थियों में भेदभाव
नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि
बच्चे भगवान का रूप होते हैं
तथा सभी बच्चे एक समान होते
हैं। जिस शिक्षा से हम अपना
जीवन निर्माण कर सकें,
अच्छे
इंसान बन सकें,
अच्छा
चरित्र गठन कर सकें और अपने
समाज तथा अपने देश की उन्नति
में अपना योगदान दे सकें,
वही
वास्तव में शिक्षा कहलाने
योग्य है। आपने यह तो सुना ही
होगा - 'किसी
की धन दौलत से कोई बेहतर नहीं
हो जाता,
कोई
गरीब है तो वह कमतर नहीं हो
जाता।'
अपने
सजेशन व कमेंट देने के लिए कमेंट बॉक्स
में सजेशन लिखकर पब्लिश आवश्य
करें।
Good bifercation old and new education pattern.
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