सच्चा दोस्त...
-सौ.
भक्ति
सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया,
साउथ
कैरोलिना,
यू.
एस.
ए.
हर
किसी के जीवन में दोस्तों का
विशेष महत्व होता है। दोस्ती
ही एक ऐसा रिश्ता होता है जो
इंसान स्वयं बनाता है। अपनी
ही तरह किसी दूसरे व्यक्ति
को खोजना,
जिसके
साथ आप अपना सामंजस बना सकते
हैं,
अपनी
मन की बातें कह सकते हैं,
जिस
पर विश्वास कर सकते हैं,
जो
हर सुख-दुख
में आपके साथ हो,
वही
दोस्त होता है। जिस तरह हमने
कई मशहूर प्रेमी जोड़ों की
कहानियां-किस्से
सुने हैं उसी प्रकार सच्ची
दोस्ती के किस्से भी अक्सर
देखने या सुनने में मिलते हैं।
फिल्मी दुनिया में भी काल्पनिक
ही सही लेकिन कहानियों में
जय-वीरू
जैसे आदि दोस्तों के किस्से
देखे होंगे। दो दोस्तों की
एक प्रेरणादायक कहानी जिसे
पढ़कर आप सच्ची दोस्ती का
महत्व समझ पाएंगे -
अस्पताल
के एक कमरे में अर्जुन और किशन
नाम के दो बीमार व्यक्ति थे।
दोनों हॉस्पिटल के उस कमरे
में थे जिसमें सिर्फ एक ही
खिड़की थी जिस के पास अर्जुन
का बेड था। जबकी किशन को गंभीर
बीमारी होने की वजह से दिनभर
अपना पूरा समय खिड़की से दूर
अपने बेड पर ही गुजारना पड़ता
था। हॉस्पिटल के एक ही कमरे
में काफी समय से साथ रह रहे
अर्जुन और किशन में दोस्ती
हो गई और यह दोस्ती दिन प्रति
दिन गहराती जा रही थी। दोनों
धीरे-धीरे
एक दूसरे से अपने परिवार की
हर छोटी-बड़ी
बातें समेत अपनी मन की हर बात
साझा करने लगे थे। खिड़की के
पास बैठकर अर्जुन अपने दोस्त
किशन को बाहरी दुनिया की सारी
बातें बताता था। जिसे सुनकर
किशन को काफी अच्छा महसूस होता
था और धीरे-धीरे
वह अपनी बीमारी को भी भूलने
लगा था। उसके अंदर जो जिंदगी
जीने की आस खत्म हो गई थी वो
फिर से जाग उठी। अर्जुन अपने
दोस्त किशन को कल्पना कर कुछ
ऐसी सकारात्मक बातें बताता
था जिसे सुनकर किशन मंत्रमुग्ध
हो जाता है। अर्जुन कभी बच्चों
के पढ़ने की बातें अपने दोस्त
को बताया करता था तो कभी फूलों
से भरे पार्क में बैठे हुए
खुशहाल लोगों की बातें करता
था। जिसे सुनकर किशन भी खिड़की
के बाहर की रंगीन दुनिया के
बारे में सोचने लगता था और
मन-ही-मन
संतोष महसूस करता था।
यह
सिलसिला काफी दिनों तक चलता
रहा,
दोनों
दोस्त अर्जुन और किशन ऐसे ही
मुश्किल घड़ी में एक-दूसरे
से बातें कर अपने मन का बोझ
हल्का कर लेते थे,
और
अपने बीमारी के दर्द को भूलने
लगे थे की तभी अचानक एक दिन
अर्जुन की मौत हो गई।
जिसकी
मौत की खबर सुनकर किशन बेहद
दुखी हुआ और फिर जब नर्स उसके
दोस्त अर्जुन के मृत शरीर को
वहां से हटा रही थी,
तभी
किशन ने नर्स से रोते हुए खिड़की
की तरफ वाला बेड लेने की इजाज़त
मांगी जो कि नर्स ने मान ली।
खिड़की के पास वाले बेड से
जैसे ही उसने खिड़की से बाहर
झांका,
उसे
सिर्फ खाली दीवार ही दिखाई
दी। तब उसने देखा कि खिड़की
के बाहर न तो कोई स्कूल का
ग्राउंड था,
जिसमें
बच्चे खेलते और रोज़ सुबह
प्रेयर करते थे और न ही कोई
हरा-भरा
फूलों से भरा पार्क था,
जिसकी
अर्जुन अक्सर बातें करता था।
उसने नर्स से खिड़की के बारे
में पूछा जिससे रोज़ उसका दोस्त
बाहर देखा करता था। उस नर्स
ने जवाब दिया कि,
"खिड़की
के बाहर तो ऐसा कुछ नहीं है।
फिर भी वो तुम्हारी हिम्मत
बढ़ाता रहा ताकि तुम जिंदगी
से हार न मानो।"
यह
होती है सच्ची दोस्ती। जिंदगी
में एक सच्चा दोस्त ज़रूर
बनाएं और एक सच्चा दोस्त बनकर
रहें। कहानी से यह सीख मिलती
है कि हमेशा अपने जीवन में ऐसे
काम करने चाहिए,
जिससे
दूसरों की जिंदगी में ख़ुशियाँ
मिलें और जिंदगी जीने की नई
उमंगे जगे। अर्थात् सभी को
अपने जीवन में ऐसे अवसर ढूंढना
चाहिए जिससे जरूरतमंद लोगों
का भला हो। एक व्यक्ति ही
बेहतरीन दोस्त बनकर किसी
व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए
प्रोत्साहित कर सकता है और
उसके अंदर जीवन खुशी से जीने
की आस जगा सकता है। सही कहते
हैं दोस्त सिर्फ आपको जानते
नहीं आप को समझते हैं। शायद
मनुष्य को खुद के बारे में हर
एक बात बारीकी से नहीं पता
होती है लेकिन उसके दोस्तों
को उसके बारे में ज़रूर पता
होती है। इशारों में,
आंखों
से,
हाव-भाव
से एक दोस्त दूसरे दोस्त के
मन की बातें समझ ही लेते हैं।
दोस्ती समझदारी का,
भरोसे
का,
विश्वास
का,
निस्वार्थ:
भाव
का और बिना किसी कसमों-वादों
का एक अटूट रिश्ता है जो उम्र
के हर पड़ाव में हर मनुष्य के
लिए बहुत ज़रूरी होता है। कई
रिश्ते बनते हैं और छूटते चले
जाते हैं। पर दोस्ती एक ऐसा
रिश्ता होता है जो बचपन से
लेकर बुढ़ापे तक आपके साथ
हमेशा रहता है। दोस्ती
का रिश्ता चंद पंक्तियों में
किसी ने खूब समझाया है-
एक
दोस्त ने दूसरे दोस्त से पूछा,
दोस्त
का मतलब क्या होता है?
उस
दोस्त ने मुस्कुराकर जवाब
दिया,
अरे,
एक
दोस्त ही तो है जिसका कोई
मतलब
नहीं होता और जहां मतलब होता
है वहां कोई दोस्त नहीं होता।
I am deeply impressed with the content of the article. Congrats Bhakti.you are genious.
ReplyDeletePrakash paithankar
ReplyDeleteThank you Aajoba 🙂🙏
Deleteसही बात है भक्ति सच्ची दोस्ती निस्वार्थ होती है और हम केवल दोस्त ही चुन सकते हैं क्योंकि रिश्तेदार व पड़ोसी चुनने की चॉइस हमारे पास नहीं होती है
ReplyDeleteबोहत अच्छा लिखा है
Keep it up 👍👏👏👏
Thank you Papa 🙂🙏
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