Friday, 12 April 2019

कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना... | Hindi

       

               कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना...

      -सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर 

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               वैसे तो आजकल काफी नई-नई बीमारियां फैलती जा रही है। जिनके बारे में चिकित्सा जगत में डॉक्टरों ने भी नहीं सुना होगा। ऐसे कई तरह के वायरल इनफेक्शन फैलते जा रहे हैं। अरे घबराइए मत, मैं आपको बीमारियों व वायरल इंफेक्शन के बारे में भी जानकारी नहीं दे रही हूं। मैं तो बरसों पुराने रोग के बारे में बात कर रही हूं जिसका कभी कोई इलाज नहीं हो पाया है और ना ही कभी होगा शायद!!! उस रोग का नाम है, क्या कहेंगे लोग?? यह बीमारी पहले भी थी पर आज लोगों में ज्यादा विकसित होती नज़र आ रही है। क्योंकि किसी भी मनुष्य को बचपन से यही सिखाया जाता है कि उसे वही काम करना चाहिए जिससे उसकी समाज कभी कोई आलोचना ना करें। उसके रिश्तेदार व दोस्त उस पर कोई टिप्पणी ना करें। समाज में जो सभी व्यक्ति करते आ रहे हैं बस उन्हीं की तरह इस धारा में हर व्यक्ति को बहते चले जाना चाहिए। अलग हटकर काम करने वालों को समाज में काफी आलोचना सहन करनी पड़ती है। शायद इस प्रकार की सीख मनुष्य के मन में यह रोग पैदा करने लगती है और उनके अंदर काबिलियत होने के बावजूद इस डर से समाज में कुछ अलग कर दिखाने व अपने सपनों को जीने की हिम्मत नहीं आ पाती।
              दोस्तों! यदि ऐसे ही कुछ महान व्यक्ति जो समाज में हम सभी के लिए उदाहरण हैं, विश्व में प्रख्यात हैं, को तभी रोक दिया जाता जब कुछ अलग कर दिखाने की चाह उनमें उत्पन्न हुई थी। तो क्या भारतवर्ष को डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जैसे महान व्यक्तित्व वाले वैज्ञानिक व राष्ट्रपति मिल पाते? अत्यंत संघर्ष वाला बालपन व्यतीत करने के पश्चात भी उनमें कुछ अलग कर गुजरने का जो जज्बा था उसे पूरी दुनिया ने देखा और उनका जीवन सभी के समक्ष एक बेहतरीन उदाहरण बन गया। यदि वह समाज के डर से अपने सपनों को उड़ने से रोक लेते तो क्या समाज को 'सपनों की उड़ान का महत्व' कभी समझ आता? ('सपनों की उड़ान' डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम द्वारा लिखी गई किताब)। वहीं दूसरी ओर आज के महान क्रिकेटर एम. एस. धोनी की बात करें जिनके संघर्ष को उनके जीवन पर आधारित फिल्म में सभी ने देखा है। वह अपने स्कूल में फुटबॉल खेला करते थे। उनके खेल से प्रभावित होकर उन्हें स्कूल की क्रिकेट टीम में विकेटकीपर बना दिया गया। अपने खेल में अच्छे प्रदर्शन के कारण उन्हें रेलवे में टी. सी. की सरकारी नौकरी भी मिली। किंतु उनके सिर पर क्रिकेट की दुनिया में कुछ कर दिखाने का जज्बा था। परिस्थितियों के विपरीत जाकर और लोग क्या कहेंगे इस की चिंता किए बिना उन्होंने अपने सपने को सच करने के लिए पूरी मेहनत की और उनके इसी जज्बे के कारण वे भारतीय क्रिकेट टीम के सफल कप्तान के रूप में उभर कर आए। अपनी मेहनत और लगन से क्रिकेट जगत में भारत को वर्ल्ड कप जिताकर विश्व की नंबर वन क्रिकेट टीम बनाया। यदि उस वक्त समाज में लोग क्या कहेंगें?? यह सोच कर या फिर उनके प्रयासों पर लोगों द्वारा की जाने वाली आलोचनाओं से डर कर यदि वह अपने कदम अपने सपनों की ओर नहीं बढ़ाते तो क्रिकेट में उन जैसे व्यक्तित्व वाले कप्तान और भारत को क्रिकेट के शिखर तक पहुंचाने वाले यह महान खिलाड़ी क्या कभी हमें मिल पाते?
            यदि मनुष्य दूसरों की सोच को खुद पर हावी होने देगा तो वह यह कभी नहीं सोच पाएगा कि उसे जीवन में अपना क्या लक्ष्य निर्धारित करना है। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक लोग बस यह सोच कर कुछ अलग नहीं कर पाते हैं और अपने सपनों को नहीं जी पाते हैं  कि लोग क्या कहेंगे। पर जब हम दूसरों को उनकी अलग सोच, संघर्ष व समाज में सम्मान देख उस वक्त यह सोचते हैं कि यदि मैं भी बिना डरे सबसे लड़ अपने सपनों को पूरा करने की ठान लेता तो आज पता नहीं किस शिखर पर होता। ऐसे व्यक्तियों को पछतावे के अलावा अंत में कुछ हासिल नहीं होता है। मनुष्य को हमेशा पक्षियों की तरह अपने पंख फैलाकर अपने सपनों के आसमान में बिना किसी विपरीत परिस्थितियों की परवाह किए बिना उड़ते रहना चाहिए। यदि उड़ना बंद कर देंगे तो कभी चल भी नहीं पाएंगे। प्रयत्न करते हुए और समाज की आलोचनाओं से बिना डरे मनुष्य को अपनी मंजिल की ओर आगे बढ़ते रहना चाहिए और यदि वह अपनी मंजिल हासिल कर लेता हैं तो यही समाज वाहवाही भी उसी तरह करता है जिस प्रकार आलोचना किया करता था। जो लोग आपकी बुराई करते नहीं थकते थे, वही लोग आप के जीवन से प्रेरणा लेंगे और दूसरों को भी देंगे।
 सच ही है ना??? 
कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।
पर आलोचनाओं से डर कर आप मत बदलना,
आपका व्यक्तित्व ही है आपका गहना, 
मंजिल ज़रूर मिलेगी बस जैसे हो वैसे ही रहना।

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