नारी एक, रूप अनेक
- सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर
नारी होती तो एक है, परंतु उसके रूप अनेक होते हैं। यदि इन रूपों में से कोई एक रूप भी ना हो तो जीवन में खालीपन महसूस होता है। वैसे तो आज की नारी का सफर चुनौतीभरा ज़रूर है, पर आज उसमें चुनौतियों से लड़ने का साहस आ गया है। अपने आत्मविश्वास के बल पर आज वह दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बना रही है। आज की नारी आर्थिक व मानसिक रूप से आत्मनिर्भर है। परिवार व अपने करियर दोनों में तालमेल बैठाती नारी का कौशल वाकई काबिले तारीफ है। किसी को शिकायत का मौका नहीं देने वाली नारी आज अपनी काबिलीयत व साहस के बूते पर कामयाबी के मुकाम तक आ पहुँची है।
चुनौतियों का हँसकर स्वागत करने वाली नारी आज हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही हैं। कल तक भावनात्मक रूप से कमज़ोर नारी आज आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन रही हैं तथा अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण फैसले स्वयं कर रही हैं। अपनी क्षमताओं से महिलाओं ने आज पुरुषों को पीछे छोड़ते हुए परिवार व समाज में एक अलग पहचान बनाई है। आत्मनिर्भर बनकर आज की नारी हर चुनौतियों का सामना कर रही हैं।
नारी के विभिन्न रूपों को संजोने की मेरी एक छोटी-सी कोशिश...नारी एक मां है,
मां ममता रूपी सागर की मूर्ति है,
संसार से परिचय कराने वाली जननी है।
बेटा हो या बेटी उसकी संतान उसका गर्व है,
वह है तो संपूर्ण संसार मानो जैसे स्वर्ग है।
नारी एक बहन है,
वह मां की ही तो परछाई है,
भाई की कलाई पर सजती प्यारी-सी राखी है।
हर त्योहार को खुशियों से कर देती है हरा-भरा,
वह निर्मल बहती प्रेम की है एक धारा।
नारी दादी है तो वह नानी भी है
दादी-नानी तो संस्कारों का भंडार है,
हर हट को पूर्ण करने को वह रहती तैयार है।
इन के लिए मूल (बेटा-बेटी) से ज्यादा प्यारा ब्याज (नाती-पोते) हैं,
वो हमारा कल है तो हम उनके आज है।
नारी एक पत्नी है,
पत्नी अगर लक्ष्मी है, तो वह अन्नपूर्णा भी है,
वह जीवन भर की सखा है, तो बलिदान का रूप भी है।
छाया बन हर सुख-दुख में साथ निभाने का वादा है,
और बगैर उसके पति का संसार आधा है।
नारी एक बहू है,
बहु त्याग और समर्पण की मूर्ति है,
ससुराल में वह करती बेटी की पूर्ति है।
सब रिश्ते-नाते आसानी से लेती है संभाल,
पति संग सास-ससुर की भी करती है देखभाल।
नारी एक बेटी है,
बेटी तो नारी का हर एक रुप होती है,
जिस घर में बेटी हो वहां अधिक रौनक होती है।
बेटियां सब के नसीब में कहां होती हैं,
जिस पर ईश्वर की अधिक कृपा हो उसी घर में बेटी होती है।
किसी ने खूब कहा है-
अपने कर्तव्यों संग नारी भर रही है अब उड़ान,
ना है कोई शिकायत ना है कोई थकान,
यही है नारी की पहचान।

नारी के हर एक रूप को संक्षेप में लेकिन गहराई से क्या खूब समझाया है। यह तो बस एक शुरुआत है, आगे ऐसे ही अच्छा लिखते रहना। अभिनंदन :)
ReplyDelete- सौरभ खानवलकर
नारी के जीवन पर व्यक्त किए गए विचार अति सुंदर है एवं आपके द्वारा और उसे सही रूप से चित्रित किया गया है आशा है आगे भी ऐसे ही लिखकर नारी और मनुष्य जाति को हो गौरवान्वित करेंगे । मेरे विचार से सभी जीव जंतुओं को प्रेम से रह कर अपना जीवन सुंदर बनाकर इसे पूर्ण करना चाहिए क्योंकि मनुष्य जीवन एक ही बार मिलता है इसलिए चाहे नारी हो या पुरुष सभी को एक दूसरे का आदर करना चाहिए और भगवान द्वारा दिए गए इस जीवन को प्रेम पूर्वक अपने कर्तव्य को पूरा करना चाहिए धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सही कहा बाबा।
DeleteBahut sundar article likha h Bhakti.Keep it up 👍
ReplyDeleteBahut sundar article likha h Bhakti.Keep it up 👍
DeleteMonika
बोहत अच्छे भक्ति
ReplyDeleteआप ने नारी के अनेक रूपों व शक्ति का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है
आगे ऎसे ही विभिन्न विषयों पर लिखते रहें
शाब्बास
great .proud to be a woman.
ReplyDeletepreeti joshi
वाह भक्ति
ReplyDeleteइस लेख मे नारी के विभिन्न किरदारो का वर्णण बखुबी किया है व कविता भी बोहत ही अर्थपूर्ण है। शाबाश
ऐसे ही लिखते रहो।
Awesome article, beautifully described and I just loved the poem, looking forward for more articles Bhakti :)
ReplyDeleteThankyou - Mukta Chimnani
Awesome article, beautifully described and I just loved the poem, looking forward for more articles Bhakti :)
ReplyDeleteThankyou - Mukta Chimnani
👌👌
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteमैं गलती नही निकाल रहा हूँ फिर भी हट या हट्ट शब्द हिंदी के अनुसार सही नही है।मेरे विचार से जिद्द या मांग होना चाहिये।
(हर हट को पूर्ण करने को वह रहती तैयार है।)