जीवन में परिवार का महत्व
-सौ.
भक्ति
सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया,
साउथ
कैरोलिना,
यू.एस.ए.
'परिवार
सिर्फ साथ रहने से नहीं बल्कि
हमेशा साथ जीने से बनता है।'
परिवार
वह जड़ है जो वृक्ष के शाखा
रुपी सभी सदस्यों को आपसी
सहयोग व समन्वय से अपना जीवन
प्रेम,
स्नेह
एवं भाईचारे पूर्वक निर्वाह
करने की प्रेरणा देता है।
संस्कार,
मर्यादा,
प्रेम,
सम्मान,
समर्पण,
आदर,
अनुशासन
आदि किसी भी सुखी-संपन्न
एवं खुशहाल परिवार के गुण होते
हैं। परिवार में जन्म लेने
के बाद व्यक्ति की पहचान होती
है और परिवार से ही अच्छे-बुरे
लक्षण सीखता है। परिवार सभी
लोगों को जोड़े रखता है तथा
सुख-दुःख
में एक-दूसरे
का साथ देना सिखाता है। एक
अच्छा परिवार बच्चे के चरित्र
निर्माण से लेकर व्यक्ति की
सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाता है।
परिवार
एक इंसान को बड़ा बनाता है और
मानव जाति में पूर्ण रूप से
विकसित करता है। यह सुरक्षा
और प्यार का वातावरण देता है
और व्यक्ति को सामाजिक और
बौद्धिक बनाता है।
कई
वैज्ञानिक शोधों में भी पाया
गया है कि
परिवार
में रहने वाला व्यक्ति अकेले
रहने वाले व्यक्ति से ज्यादा
खुश रहता है।
संयुक्त
परिवार में वृद्धों का संबल
प्रदान होता रहा है और उनके
अनुभव व ज्ञान से युवा व बाल
पीढ़ी लाभान्वित होती रही
है। लेकिन बदलते समय में तीव्र
औद्योगीकरण,
शहरीकरण
व आधुनिकीकरण के कारण संयुक्त
परिवार की परंपरा डगमगाने
लगी है। वस्तुत:
संयुक्त
परिवारों का बिखराव होने लगा
है। एकाकी परिवारों की जीवनशैली
ने दादा-दादी
और नाना-नानी
की गोद में खेलने व लोरी सुनने
वाले बच्चों का बचपन छीन कर
उन्हें मोबाइल की दुनिया का
आदि बना दिया है। व्यक्तिगत
आकांक्षा,
नौकरी
या व्यवसाय में उन्नति,
आपसी
मन मुटाव,
सामंजस्य
की कमी,
इत्यादि
के कारण संयुक्त परिवार की
संस्कृति धीरे-धीरे
खत्म होती जा रही है। गांवों
में रोज़गार का अभाव होने के
कारण एक बड़ी आबादी का झुकाव
शहरों की ओर बढ़ता जा रहा है।
शहरों में भीड़भाड़ रहने के कारण
कई बच्चे अपने माता-पिता
को चाह कर भी पास नहीं रख पाते
हैं। यदि कुछ अपने साथ उन्हें
रखना भी चाहे तो वे शहरी जीवन
के अनुसार खुद को ढाल नहीं
पाते।
इसके
अलावा पश्चिमी संस्कृति का
प्रभाव बढ़ने के कारण आधुनिक
पीढ़ी का एक बड़े वर्ग का अपने
बुजुर्गों व अभिभावकों के
प्रति आदर कम होने लगा है।
वृद्धावस्था में अधिकतर बीमार
रहने वाले माता-पिता
अब उन्हें बोझ लगने लगे हैं।
वे अपने संस्कारों और मूल्यों
से कट कर एकाकी जीवन को ही अपनी
असली खुशी व आदर्श मानने लगते
हैं। इसके अलावा बुजुर्ग वर्ग
और आधुनिक पीढ़ी के विचार मेल
नहीं खाते है क्योंकि बुजुर्ग
पुराने जमाने के अनुसार व सब
से घुलमिल कर जीना पसंद करते
हैं तो युवा वर्ग आज की स्टाइलिश
लाइफ जीना चाहते हैं। इसी वजह
से दोनों के बीच संतुलन की कमी
दिखती है,
जो
परिवार के टूटने का कारण बनती
है। यदि संयुक्त परिवारों को
समय रहते नहीं बचाया गया तो
आने वाली पीढ़ी ज्ञान संपन्न
होने के बाद भी दिशाहीन होकर
अपने जीवन को सार्थक नहीं बना
पाएगी। ज़रा सोचिए,
ऐसा
कौन सा घर परिवार है जिसमें
मतभेद नहीं होते?
लेकिन
यह मतभेद मनभेद कभी ना बने इस
बात का ध्यान रखना आवश्यक है।
बुज़ुर्ग वर्ग को भी चाहिए
कि वह नए ज़माने के साथ चलते
हुए नई सोच को अपनाएं जिससे
उनकी और नई पीढ़ी के बीच का
फासला कम हो सके।
परिवार
प्यार का दूसरा नाम है। अपने
परिवार को समय दीजिए इससे
प्रेम और विश्वास का रिश्ता
मजबूत बनता है। याद रखिए कहीं
जिंदगी की भाग दौड़ में परिवार
पीछे न छूट जाए। जहां तक हो
सके कोशिश करें कि परिवार के
सभी सदस्य साथ में मिलकर रहे।
एक ही छत के नीचे बुजुर्गों
का स्नेह और आशीर्वाद के साथ
बच्चों की हंसी-ठिठोली
भी गूंजें। अपनी भाग-दौड़
भरी दिनचर्या से रोज़ कम-से-कम
एक घंटा अपने परिवार के लिए
अवश्य निकालें। जिसे आजकल
'फैमिली
टाइम'
भी
कहा जाता है। एक वक्त निश्चित
कर परिवार के सभी सदस्य एक साथ
बैठकर भोजन करें तथा दिन भर
के अपने अनुभवों को एक दूसरे
के साथ साझा करें। आपकी बातें
सुन आपके बच्चे भी बहुत कुछ
सीख सकते हैं। उनमें कुछ संस्कार
व आदतें आपको तथा घर के वृद्ध
सदस्यों को देख अपने आप आने
लगेंगी। बच्चों में अपने से
बड़ों का तथा अपने माता-पिता
का आदर करना जैसी सीख उन्हें
आप से ही तो मिलेगी। याद रखिए
जहां आज आप हैं वहां कल आपके
बच्चे होंगे। आखिरकार बच्चे
वही सीखते हैं जो वे अपने बड़ों
को करता देखते हैं। किसी ने
सच ही कहा है -
परिवार
से बड़ा कोई धन नहीं,
पिता
से बड़ा कोई सलाहकार नहीं,
मां
की छाव से बड़ी कोई दुनिया नहीं,
भाई
से अच्छा कोई भागीदार नहीं,
बहन
से बड़ा कोई शुभचिंतक नहीं,
इसलिए
"परिवार"
से
अच्छा कोई जीवन नहीं।
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