Friday, 30 August 2019

त्योहारों का महत्व | Hindi

त्योहारों का महत्व




-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू. एस. .



           भारत अनेक भौगोलिक भिन्नताओं का देश है । यहाँ अनेक प्रकार के धर्मों, जातियों और उप-जातियों के लोग रहते हैं । हर जाति-धर्म के लोग अपने-अपने अलग-अलग विश्वास और भावनाओं के अनुसार अलग-अलग प्रकार के त्यौहार मनाते हैं। भारत का उत्तर हो या दक्षिण, पूरब हो या पश्चिम, लोगों के मन की यही खुशी बिहू, लोहरी, बैसाखी, मकर संक्रांति, ओणम, पोंगल, होली, रामनवमी, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, गणेश उत्सव, दुर्गापूजा, दशहरा, दीपावली, ईद, क्रिसमस आदि तथा साथ ही राष्ट्रीय त्योहार जैसे स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और गाँधी जयंती जैसे त्योहारों के रूप में दिखाई देती है। इसके अलावा जन्मदिन, शादी-ब्याह आदि अवसरों को भी त्योहारों की तरह ही उत्सव से मनाया जाता हैं। त्योहारों के अनेक लाभ हैं। त्योहारों के समय घर-परिवार, समाज के लोगों से मिलने-जुलने के साथ आपसी मतभेद दूर कर एकता और भाईचारा के साथ सभी त्योहार एक साथ मनाए जाते हैं। सामाजिक तौर पर राष्ट्रीय त्योहार उत्साह पूर्वक मनाने से राष्ट्रीय चेतना जागती है और देश मजबूत बनता है। संस्कृत के महाकवि-साहित्यकार कालिदास ने मनुष्य को उत्सव-प्रिय कहा है क्योंकि मनुष्य किसी--किसी तरह उत्सव मना कर अपने मन की कुंठा को दूर करके मानसिक रूप से स्वस्थ हो जाता है। त्योहारों से मनुष्य के मन में नये विचार तथा नई चेतना जाग जाती है जिससे वह अपने कार्य के लिए फिर से तरोताज़ा हो जाता है। इसीलिए जीवन में त्योहारों का बड़ा महत्व है।
             इन सभी त्योहारों में एक प्रमुख त्योहार जिसमें सभी जन समुदाय एक साथ भाग लेते हैं तथा हर्षोल्लास से इस त्यौहार को सामाजिक स्तर पर मनाते हैं। 'गणेश उत्सव' जी हां दोस्तों, हर कोई अपने घर, गली या मोहल्लें में छोटे बच्चे से लेकर बुजुर्ग व्यक्ति भी बड़ी धूमधाम से प्रसन्न चित्त होकर तथा विधि-विधान से इस उत्सव को मनाते हैं। यह त्योहार सामाजिक मान्यताओं परंपराओं व पूर्व संस्कारों पर आधारित है। गणपति उत्सव की शुरुआत 1893 महाराष्ट्र से लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने की थी। 1893 के पहले भी गणपति उत्सव मनाया जाता था पर वह मात्र घरों तक ही सीमित था। उस समय आज की तरह पांडाल नहीं बनाए जाते थे और ना ही सामूहिक गणपति विराजते थे। तिलक उस समय एक युवा क्रांतिकारी और गर्म दल के नेता के रूप में जाने जाते थे। वे एक बहुत ही स्पष्ट वक्ता और प्रभावी ढंग से भाषण देने में माहिर थे। यह बात ब्रिटिश अफ़सर भी अच्छी तरह जानते थे कि अगर किसी मंच से तिलक भाषण देंगे तो वहां स्वतंत्रता के लिए उनके द्वारा आग बरसना तय है। तिलक 'स्वराज' के लिए संघर्ष कर रहे थे और वे अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहते थे। इसलिए उन्हें ऐसा सार्वजनिक मंच चाहिए था, जहां से उनके विचार अधिकांश लोगों तक पहुंच सके। इस काम को करने के लिए उन्होंने गणपति उत्सव को चुना और इसे सुंदर भव्य रूप दिया जिसे आज हम देखते हैं। तिलक के इस कार्य से दो फायदे हुए, एक तो वह अपने विचारों को जन-जन तक पहुंचा पाए और दूसरा यह कि इस उत्सव ने आम जनता को भी स्वराज के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी और उन्हें जोश से भर दिया। इस तरह से गणपति उत्सव ने भी आज़ादी की लड़ाई में एक अहम् भूमिका निभाई। तिलक जी द्वारा शुरू किए गए इस उत्सव को आज भी भारतीय पूरी धूमधाम से मना रहे हैं और आगे भी मनाते रहेंगे।
             भारत में गणेश उत्सव का त्यौहार भाद्रपद माह (अगस्त और सितंबर) में शुक्ल पक्ष में चतुर्थी में मनाया जाता है| गणेश उत्सव 11 दिन का एक विशाल महोत्सव होता है जिसे पूरे भारत-वर्ष में हर्सोल्लास से मनाया जाता है| खासकर महाराष्ट्र में यह पर्व सबसे ज़्यादा धूमधाम से मनाया जाता है| यह वहां का प्रमुख त्यौहार होता है| लोग गणेश चतुर्थी के दिन गणेश भगवान की प्रतिमा को अपने घरों और मोहल्ले में स्थापित करते हैं| रोज़ाना मन्त्रों का उच्चारण और गणेश आरती गाकर हर्षोल्लास से गणेश जी की पूजा करते हैं तथा समस्त कष्टों को हरने की कामना करते हैं| भगवान गणेश को विघ्नहारी भी कहा जाता है क्योंकि वह विघ्नों को हरने वाले और मंगलकारी हैं| इस 11 दिवसीय उत्सव के बाद गणेश भगवान की प्रतिमा को समुद्र, नदी, तालाब आदि जगहों पर विसर्जित किया जाता है। परंतु दुख की बात यह है कि कई प्रतिमाएं शुद्ध मिट्टी की ना होते हुए प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनाई जाती है जो पानी में पूर्णता नहीं घुलतीं। जिसकी वजह से जल प्रदूषित होता है और कई विषैले तत्व शुद्ध पानी को अशुद्ध कर देते हैं जिससे जल के जीवों को भी नुकसान होता है। मूर्ति पूर्णता: पानी में ना घूलने की वजह से वह खंडित होती है और गणेश जी का अपमान होता है। इसलिए बप्पा की प्रतिमा खरीदते समय इस बात का विशेष तौर पर ध्यान देना चाहिए की मूर्ति मिट्टी की बनी हो तथा इसका विसर्जन घर में ही एक बाल्टी में किया जाना चाहिए। मूर्ति पानी में घूलने के बाद पानी को घर के बगीचे में लगे पौधों में डाल दिया जाना चाहिए। जिससे पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होगा और गणेश जी का भी अपमान नहीं होगा। दोस्तों! एक और अनोखा विचार आप लोगों से साझा करना चाहती हूं। क्यों ना हम लोग फिटकरी के गणेश जी बनाएं। विसर्जन के बाद फिटकरी पानी को साफ रखने में सहायक होगी। यह एक अनोखी पहल हो सकती है।
          आशा है इस गणेश उत्सव से आप उपरोक्त बताई गई बातों को ध्यान में रखकर इस त्यौहार को धूमधाम से मनाएंगे। विघ्नहर्ता गणेश जी आपके सभी विघ्न और दुख को हर लें तथा आपकी हर मनोकामना पूर्ण करें। इसी के साथ आप सभी को इस गणेश उत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं।

" गणपति बप्पा मोरिया "


Friday, 23 August 2019

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत | Hindi


मन के हारे हार है, मन के जीते जीत




-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू. एस. .


क्यों डरें कि ज़िंदगी में क्या होगा,
हर वक्त क्यों सोचें कि बुरा होगा,
बढ़ते रहे मंज़िल की ओर हम,
कुछ ना भी मिला तो क्या?
तजुर्बा तो नया होगा..

            मनुष्य अपने जीवन में अपनी मंज़िल की ओर तभी बढ़ सकता है जब उसे खुद पर यकीन हो। आत्मविश्वास शब्द का अर्थ है स्वयं पर विश्वास करना। 'आत्मविश्वास' एक ऐसी चाबी है जो मनुष्य को ऊंची-से-ऊंची मंज़िल तक पहुंचा सकती है परंतु यदि यह चाबी कहीं गुम हो जाए तो इससे ढूंढ पाना इतना आसान नहीं होता। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास होता है वह आसानी से अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। आत्मविश्वास ही व्यक्ति को कोई भी कार्य करने के लिए सक्षम बनाता है। मनुष्य में आत्मविश्वास की उत्पत्ति दृढ़ संकल्प से होती है। व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में अपना आत्मविश्वास नहीं खोना चाहिए। जिस तरह डाल पर बैठे हुए परिंदे को पता है कि डाली कमज़ोर है फिर भी वह उसी डाल पर बैठा है, जानते हैं क्यों? क्योंकि पंछी को डाल से ज्यादा अपने पंखों पर भरोसा है। यह उसका आत्मविश्वास है कि उसके पंख उसे कभी गिरने नहीं देंगे। इसी तरह व्यक्ति को खुद पर यकीन होना चाहिए तो उसे अंधेरे में भी मंजिल तक पहुंचने का रास्ता मिलते चले जाएगा।
राह संघर्ष की जो चलता है,
वही संसार को बदलता है,
जिसने रातों से जंग जीती है,
सूर्य बनकर वही निकलता है।

         आत्मविश्वास प्रत्येक व्यक्ति में होता है। किसी में कम या किसी में अधिक। जिस व्यक्ति का आत्मविश्वास अधिक होता है वह सफलता की सीढ़ियां चढ़ते जाता है। परंतु जिस में इसका अभाव होता है वह सफलता की सीढ़ियों तक भी पहुंच नहीं पाता। इसके कारण तो कई हो सकते हैं परंतु प्रमुख कारण है डर और शंका। जैसे, यदि मैंने यह कार्य गलत कर दिया तो? मैं यह कार्य नहीं कर सकती या नहीं कर सकता। मुझसे यह सब नहीं होगा। अगर मैं नाकाम हो गया तो लोग क्या कहेंगे। बस, यही डर और शंका व्यक्ति के अंदर के आत्मविश्वास को धीरे-धीरे खत्म कर देते हैं। इन प्रमुख कारणों में निराशा भी एक कारण है। निराशा मनुष्य के मन में तभी जन्म लेती है जब वह कोई कार्य करता है और उसे उसका उचित परिणाम नहीं मिलता‌ या किसी का प्रोत्साहन नहीं मिलता। उसके अंदर के हुनर से उसकी कोई पहचान नहीं करवाता। जब इस प्रकार की निराशा मनुष्य के मन में घर करती है तो आत्मविश्वास धीरे-धीरे उसके मन से खत्म होने लगता है। इन सब में एक प्रमुख कारण आलोचना भी है। आलोचना का एक शब्द ही काफी होता है मनुष्य के आत्मविश्वास को पूरी तरह से खत्म करने के लिए। खासकर तब जब आलोचना उसके कार्य से संबंधित ना होते हुए उसके रंग-रूप, हाव-भाव, चाल-ढाल अर्थात् ही उसके व्यक्तित्व से संबंधित हो।
           दोस्तों, यदि हम किसी व्यक्ति के मन में आत्मविश्वास नहीं जगा सकते तो किसी भी कारण से या किसी भी तरह की बातों से दूसरों के आत्मविश्वास को कभी ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए। क्योंकि कहते हैं ना 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।' किसी कारण वश यदि व्यक्ति का आत्मविश्वास कम हो जाता है और मन ही मन में स्वयं को कमज़ोर समझने लगता है तो वह अपने जीवन में कभी भी आगे नहीं बढ़ सकता। जीवन में आगे बढ़ने के लिए परिश्रम और आत्मविश्वास यही दो बातें महत्वपूर्ण होती हैं। इसलिए व्यक्ति को आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए अपने मन को जीतना आवश्यक है। यदि मन में वह दृढ़ निश्चय कर आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ता रहेगा तो सफलता उसके कदम अवश्य चूमेगी। और यदि आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए मनुष्य को अपने व्यक्तित्व में निखार की अथवा किसी अन्य क्षेत्र में सुधार करने की आवश्यकता है तो उसे इन सभी बातों से भी पीछे नहीं हटना चाहिए। क्योंकि यदि व्यक्ति में आत्मविश्वास है तो उसने अपने लक्ष्य को पाने की शुरुआत कर दी है। यूं ही आत्मविश्वास के साथ हमेशा आगे बढ़ते रहें और यूं ही अपनी मंज़िल की ओर चलते रहें। किसी ने खूब कहा है दोस्तों-

सफलता एक चुनौती है इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई है देखो और सुधार करो,
कुछ किए बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

Friday, 16 August 2019

सच्चा दोस्त.... | Hindi


सच्चा दोस्त...




-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू. एस. .




               हर किसी के जीवन में दोस्तों का विशेष महत्व होता है। दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता होता है जो इंसान स्वयं बनाता है। अपनी ही तरह किसी दूसरे व्यक्ति को खोजना, जिसके साथ आप अपना सामंजस बना सकते हैं, अपनी मन की बातें कह सकते हैं, जिस पर विश्वास कर सकते हैं, जो हर सुख-दुख में आपके साथ हो, वही दोस्त होता है। जिस तरह हमने कई मशहूर प्रेमी जोड़ों की कहानियां-किस्से सुने हैं उसी प्रकार सच्ची दोस्ती के किस्से भी अक्सर देखने या सुनने में मिलते हैं। फिल्मी दुनिया में भी काल्पनिक ही सही लेकिन कहानियों में जय-वीरू जैसे आदि दोस्तों के किस्से देखे होंगे। दो दोस्तों की एक प्रेरणादायक कहानी जिसे पढ़कर आप सच्ची दोस्ती का महत्व समझ पाएंगे -
              अस्पताल के एक कमरे में अर्जुन और किशन नाम के दो बीमार व्यक्ति थे। दोनों हॉस्पिटल के उस कमरे में थे जिसमें सिर्फ एक ही खिड़की थी जिस के पास अर्जुन का बेड था। जबकी किशन को गंभीर बीमारी होने की वजह से दिनभर अपना पूरा समय खिड़की से दूर अपने बेड पर ही गुजारना पड़ता था। हॉस्पिटल के एक ही कमरे में काफी समय से साथ रह रहे अर्जुन और किशन में दोस्ती हो गई और यह दोस्ती दिन प्रति दिन गहराती जा रही थी। दोनों धीरे-धीरे एक दूसरे से अपने परिवार की हर छोटी-बड़ी बातें समेत अपनी मन की हर बात साझा करने लगे थे। खिड़की के पास बैठकर अर्जुन अपने दोस्त किशन को बाहरी दुनिया की सारी बातें बताता था। जिसे सुनकर किशन को काफी अच्छा महसूस होता था और धीरे-धीरे वह अपनी बीमारी को भी भूलने लगा था। उसके अंदर जो जिंदगी जीने की आस खत्म हो गई थी वो फिर से जाग उठी। अर्जुन अपने दोस्त किशन को कल्पना कर कुछ ऐसी सकारात्मक बातें बताता था जिसे सुनकर किशन मंत्रमुग्ध हो जाता है। अर्जुन कभी बच्चों के पढ़ने की बातें अपने दोस्त को बताया करता था तो कभी फूलों से भरे पार्क में बैठे हुए खुशहाल लोगों की बातें करता था। जिसे सुनकर किशन भी खिड़की के बाहर की रंगीन दुनिया के बारे में सोचने लगता था और मन-ही-मन संतोष महसूस करता था।
यह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा, दोनों दोस्त अर्जुन और किशन ऐसे ही मुश्किल घड़ी में एक-दूसरे से बातें कर अपने मन का बोझ हल्का कर लेते थे, और अपने बीमारी के दर्द को भूलने लगे थे की तभी अचानक एक दिन अर्जुन की मौत हो गई।
              जिसकी मौत की खबर सुनकर किशन बेहद दुखी हुआ और फिर जब नर्स उसके दोस्त अर्जुन के मृत शरीर को वहां से हटा रही थी, तभी किशन ने नर्स से रोते हुए खिड़की की तरफ वाला बेड लेने की इजाज़त मांगी जो कि नर्स ने मान ली। खिड़की के पास वाले बेड से जैसे ही उसने खिड़की से बाहर झांका, उसे सिर्फ खाली दीवार ही दिखाई दी। तब उसने देखा कि खिड़की के बाहर न तो कोई स्कूल का ग्राउंड था, जिसमें बच्चे खेलते और रोज़ सुबह प्रेयर करते थे और न ही कोई हरा-भरा फूलों से भरा पार्क था, जिसकी अर्जुन अक्सर बातें करता था। उसने नर्स से खिड़की के बारे में पूछा जिससे रोज़ उसका दोस्त बाहर देखा करता था। उस नर्स ने जवाब दिया कि, "खिड़की के बाहर तो ऐसा कुछ नहीं है। फिर भी वो तुम्हारी हिम्मत बढ़ाता रहा ताकि तुम जिंदगी से हार न मानो।"
         ‌‌   यह होती है सच्ची दोस्ती। जिंदगी में एक सच्चा दोस्त ज़रूर बनाएं और एक सच्चा दोस्त बनकर रहें। कहानी से यह सीख मिलती है कि हमेशा अपने जीवन में ऐसे काम करने चाहिए, जिससे दूसरों की जिंदगी में ख़ुशियाँ मिलें और जिंदगी जीने की नई उमंगे जगे। अर्थात् सभी को अपने जीवन में ऐसे अवसर ढूंढना चाहिए जिससे जरूरतमंद लोगों का भला हो। एक व्यक्ति ही बेहतरीन दोस्त बनकर किसी व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है और उसके अंदर जीवन खुशी से जीने की आस जगा सकता है। सही कहते हैं दोस्त सिर्फ आपको जानते नहीं आप को समझते हैं। शायद मनुष्य को खुद के बारे में हर एक बात बारीकी से नहीं पता होती है लेकिन उसके दोस्तों को उसके बारे में ज़रूर पता होती है। इशारों में, आंखों से, हाव-भाव से एक दोस्त दूसरे दोस्त के मन की बातें समझ ही लेते हैं। दोस्ती समझदारी का, भरोसे का, विश्वास का, निस्वार्थ: भाव का‌ और बिना किसी कसमों-वादों का एक अटूट रिश्ता है जो उम्र के हर पड़ाव में हर मनुष्य के लिए बहुत ज़रूरी होता है। कई रिश्ते बनते हैं और छूटते चले जाते हैं। पर दोस्ती एक ऐसा रिश्ता होता है जो बचपन से लेकर बुढ़ापे तक आपके साथ हमेशा रहता है। दोस्ती का रिश्ता चंद पंक्तियों में किसी ने खूब समझाया है-
एक दोस्त ने दूसरे दोस्त से पूछा,
दोस्त का मतलब क्या होता है?
उस दोस्त ने मुस्कुराकर जवाब दिया,
अरे, एक दोस्त ही तो है जिसका कोई 
मतलब नहीं होता और जहां मतलब होता है वहां कोई दोस्त नहीं होता।




Tuesday, 13 August 2019

व्यर्थ न जाने दो... | Hindi

व्यर्थ न जाने दो...

-सौ. भक्ति सौरभ खानवलकर
-कोलंबिया, साउथ कैरोलिना, यू.एस.


                 स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त, भारत का राष्ट्रीय त्योहार। 15 अगस्त 1947 को लगभग 200 वर्ष के बाद हमारे भारत देश को अंग्रेजों की गुलामी से आज़ादी मिली थी। यह भारतीय इतिहास का सर्वाधिक भाग्यशाली और महत्वपूर्ण दिवस था जब हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना सब कुछ न्योछावर कर भारत के लिए आज़ादी हासिल की थी। प्रतिवर्ष इस दिन हमारा तिरंगा झंडा भारत के प्रधानमंत्री द्वारा दिल्ली के लाल क़िले पर फहराया जाता है तथा यहीं से वे देशवासियों को संबोधित करते हैं। राष्ट्रीय ध्वज को 21 तोपों की सलामी के साथ उस पर हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा कर सम्मान दिया जाता है तथा सभी के द्वारा हमारा राष्ट्रगान गाया जाता है। हमारे तिरंगे झंडे में केसरिया रंग हिम्मत और बलिदान को, सफेद रंग शांति और सच्चाई को और हरा रंग विश्वास और शौर्य का प्रतीक है। तिरंगे के मध्य में अशोक चक्र है जिसमें 24 तीलिया होती हैं। इस खास दिन देशवासी भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, रानी लक्ष्मी बाई, चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाष चंद्र बोस, गांधी जी जैसे कई वीर स्वतंत्रता सेनानियों के महान बलिदानों को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके अविस्मरणीय योगदानओं के लिए याद करते हैं। इस दिन को ध्वजारोहण, परेड और सांस्कृतिक आयोजनों के साथ पूरे भारतवर्ष में एक उत्सव की तरह धूमधाम से मनाया जाता है।
                यदि आज स्वतंत्र भारत में हम खुलकर सांस ले रहे हैं तो इसके पीछे कई लोगों का संघर्ष और बलिदान है। इस स्वतंत्रता को संजो कर रखना आने वाली पीढ़ी को एक सुंदर भारत सौंपना आज भारत के प्रत्येक नागरिक का यह प्रथम कर्तव्य है। उन महान स्वतंत्रता सेनानियों और हमारे देश के जवानों के बलिदान को व्यर्थ न जाने दो दोस्तों। इस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर शहीद हुए उन वीरों को श्रद्धांजलि स्वरूप ये कुछ पंक्तियां एक सैनिक की ज़ुबानी -


हर वक्त, हर दिन मैं जीता हूं कई उम्मीदों से,
यदि आज हो दुश्मन से जंग
तो जीत लूं मैं उसे अपनी बाजूओं से।
नहीं डरता मैं दुश्मन के किसी भी वार से,
कभी ना थकूंगा
कर दूंगा दुश्मन का अंत अपनी तलवार से।
हम कहते हैं क्या सुनो,
इन वीर सपूतों के बहते रक्त को तुम,
व्यर्थ जाने दो...

मैं तो खड़ा देश की सीमा पर, सोचता हूं किस लिए?
मेरे देश के लोग आपस में लड़ मरें, क्या इसलिए?
तुम चैन की नींद सो सको इसलिए करता हूं अपना जीवन कुर्बान,
खुशी से मना सको सारे तीज त्यौहार इसलिए दे देता हूं अपना बलिदान।
हम कहते हैं क्या सुनो 
इन शूरवीरों के बलिदान को तुम
व्यर्थ जाने दो...


क्यों करते हो जात-पात पर झगड़ा और भ्रष्टाचार,
है बिनती रहो मिल जुलकर और समाज में दिखाओ शिष्टाचार।
तेरा, मेरा, इसका, उसका विवाद छोड़ यदि सब मिलकर बन जाएं सिर्फ हिंदुस्तानी,
तो इस नए भारत के निर्माण के लिए हर कोई तैयार है देने को अपनी कुर्बानी।
हम कहते हैं क्या सुनो,
इन शहीदों की कुर्बानी को तुम
व्यर्थ जाने दो...


मातृभाषा के साथ विविध भाषाओं का सम्मान करो तुम,
देश की खूबसूरत संस्कृति को संभाल कर रखो तो तुम,
मातृभूमि की मिट्टी का तिलक अपने माथे पर लगाकर सदैव करो इस पर गर्व,
ताकि हम सब भाईचारे से मिलकर बना सकें भारतवर्ष को स्वर्ग।
हम कहते हैं क्या सुनो 
इन मातृभक्तों के सपनों को तुम,
व्यर्थ जाने दो....


हे मातृभूमि! तेरी रक्षा करते-करते यदि मैं शहीद भी हो जाऊं,
रहेगी मन में बस यही इच्छा हर जन्म मैं सिर्फ तेरे ही काम आऊं।
कह देना राह तकती उन निगाहों से
इस मिट्टी में कहीं खो गया है तुम्हारा नंदन।
इन देशभक्तों की पुकार सुनने के लिए सभी भारतवासियों का वंदन
हम कहते हैं क्या सुनो,
इन मातृभूमि के रक्षकों की पुकार को तुम
व्यर्थ जाने दो...

जय हिंद
वंदे मातरम्


                     दोस्तों, आज रक्षाबंधन का पावन त्यौहार भी है। यूं तो भाई-बहनों के बीच स्नेह और कर्तव्य की भूमिका किसी एक दिन की मोहताज नहीं है। पर रक्षाबंधन के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की वजह से ही यह दिन इतना महत्वपूर्ण बना है। बरसों से चला आ रहा यह त्यौहार आज भी बेहद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। हिन्दू श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह त्योहार भाई का बहन के प्रति स्नेह का प्रतीक है। रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं, उनका तिलक करती हैं और उनसे अपनी रक्षा का संकल्प लेती हैं। हालांकि रक्षाबंधन की व्यापकता इससे भी कहीं ज्यादा है। भाई की कलाई पर बहन के द्वारा बांधी जाने के साथ-साथ राखी देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है। रक्षाबंधन का इतिहास हिंदू पौराणिक कथाओं में पढ़ा जा सकता है। रक्षाबंधन के पर्व में परस्पर एक-दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना निहित है। आज यह त्योहार हमारी संस्कृति की पहचान है।

आप सभी को स्वतंत्रता दिवस के राष्ट्रीय पर्व व रक्षाबंधन के त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाएं।